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बात-बात में बोध
ज्यादा गहराई में नहीं जाकर मैं मुख्य
" अनेक भेद किए जाते हैं । भेदों की ही चर्चा करना चाहूंगा। जीव की शुद्ध-अशुद्ध अवस्था के आधार पर इसके दो भेद किए जाते हैं - १. सिद्ध-कर्म मुक्त विशुद्ध चेतना २ संसारी - कर्मबद्ध आत्मा की अशुद्ध अवस्था । सिद्ध जीवों के सिद्धत्व प्राप्ति की अन्तिम अवस्था के आधार पर तीर्थ सिद्ध आदि पन्द्रह भेद किए जाते हैं । उत्तरकालीन अवस्था सबकी समान होती है । संसारी जीवों में अवस्था की विविधता होती है । इसलिए उनके दो से लेकर ५६३ तक भेद किए जाते हैं ।
कमल -- पांच सौ तरेसठ भेद ! महाराज ! सुनते-सुनते बोर हो जायेंगे। हम तो धर्म में प्राथमिक कक्षा के विद्यार्थी हैं । हमें तो जीव के मुख्य भेदों के बारे में बतलाएं ।
मुनिराज - घबराओ मत। मैं तुम्हारी ग्रहण क्षमता के अनुसार ही बतला रहा हूं । मोक्ष जाने की योग्यता और अयोग्यता के आधार पर जीव के भव्य - अभव्य, सुख-दुःख की प्राप्ति व निवृत्ति के लिए गमन करने व न करने वालों के आधार पर त्रस व स्थावर, जीवन के आरम्भ में अपेक्षित पौद्गलिक सामग्री की प्राप्ति और अप्राप्ति के आधार पर पर्याप्त व अपर्याप्त और आंखों से दिखाई न देने और दिखाई देने के आधार पर सूक्ष्म व बादर आदि दो-दो भेद किए जाते हैं ।
विमल - क्या नहीं दिखने वाले सब जीव सूक्ष्म होते हैं ?
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मुनिराज - यह कोई नियम नहीं है। नहीं दिखने वाले बहुत जीव बादर भी होते हैं। पर इतना तो निश्चित है कि जो दिखते हैं वे सब बादर ही हैं। अब जीव के तीन भेद करते हैं । लिंग के आधार पर स्त्री, पुरुष व नपुंसक, व्रत के आधार पर संयमी, असंयमी, संयमासंयमी और मानसिक संवेदन होने न होने के आधार पर संज्ञी, असंज्ञी, नो संज्ञी -- नो असंज्ञी भेद हो जाते हैं।
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कमल - संज्ञी, असंज्ञो, नो संज्ञी - नो असंज्ञी शब्द हमारे लिए एकदम नये हैं, इनसे आपका क्या तात्पर्य है ?
मुनिवर - जिनमें मानसिक संवेदना होती है वे संज्ञी जीव कहलाते हैं । इस विभाग में गर्भोत्पन्न पांच इन्द्रियों वाले जीव व औपपातिक नारक और देवता आते हैं । जिनमें मानसिक संवेदन नहीं सिर्फ ऐन्द्रियक चेतना होती है वे असंज्ञी जीव कहलाते हैं। एकेन्द्रिय जीवों से लेकर चार इन्द्रिय वाले जीव व सम्मूच्छिम पांच इन्द्रिय वाले जीव इस वर्ग में आते हैं ! तीसरे वर्ग में केवलज्ञानी आते हैं
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