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बात-बात में बोध
किया जा सकता। व्यक्ति का हर पल धर्म का आराधना में बीतना
चाहिये। कमल-देव, गुरु, धर्म के स्वरूप से आपने हमको परिचित कराया। सम्यक्त्व
प्राप्ति के लिए क्या इनकी जानकारी कर लेना मात्र पर्याप्त है ? मुनिवर-कोरी जानकारी कर लेना मात्र पर्याप्त नहीं है। इन तीनों तत्त्वों पर
व्यक्ति की घनीभूत श्रद्धा भी होनी जरूरी है। ज्ञान के बिना श्रद्धा
और श्रद्धा के बिना ज्ञान अपूर्ण है । दोनों की संयुति होना जरूरी है। पक्षी के लिए आंख और पांख की तरह जीव के लिए ज्ञान और श्रद्धा है। श्रद्धा होने से ही सम्यक्त्व का स्पर्श होता है । जैन दर्शन तो ज्ञान व श्रद्धा से भी आगे की बात करता है और वह है आचरण । आचरण अगर सभ्यक नहीं है तो भी अधूरापन है। सम्यक्त्व की प्राप्ति होने पर आचरण के अभाव में लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव नहीं है । जिस तरह व्यक्ति किसी स्थान विशेष पर पहुँचना चाहता है तो उसे रास्ते का ज्ञान, उस पर विश्वास व उस पर गतिशीलता इस त्रिपुटी को अपनाना जरूरी है वैसे ही मोक्ष-प्राप्ति के लिए सम्यग ज्ञान, सम्यग् दर्शन और सम्यग् चरित्र का योग होना अनिवार्य है। इतने सारे विश्लेषण के बाद तुम ही बताओ-देव, गुरु और धर्म के बारे में
तुम क्या समझे? कमल-विमल-मुनिवर ! आपके इस मार्मिक विवेचन को सुनकर जैसा हम
समझे हैं, उसके अनुसार देव-अरहन्त है, गुरु-अहिंसा आदि व्रतों को पूर्ण रूप से पालन करने बाले साधु और धर्म-अहतों द्वारा
भाषित मार्ग है। मुनिवर--बिलकुल सही बताया। उपसंहार में यही कहना है-इस पहचान
को कभी भूलना मत । श्रद्धा से विचलित करने वाले अनेक प्रलोभन व भटकाव इस दुनिया में हैं, तुम सजग होकर इस श्रद्धा को सुदृढ़
बनाये रखना। विमल-उर्वरा भूमि में बोये गए बीज कभी निरर्थक नहीं जाते, उसी तरह
हमको दिया हुआ ज्ञान कभी निष्फल नहीं होगा। श्रद्धा में मजबूत रहकर ही हम आपके समय और श्रम की कीमत को चुका सकेंगे। मुनिवर ! आपके इस अमूल्य अनुदान को हम कभी भुलायेंगे नहीं ।
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