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देव, गुरु और धम
कभी कोई प्रकार की चोरी करता, ब्रह्मचर्य का पूर्ण रूप से पालन करता है, किसी प्रकार के धन-धान्य का संग्रह नहीं करता है । दूसरे शब्दों में कहें तो गुरु वह होता है जो व्रतों की सम्पूर्ण आराधना
करता है। कमल--व्रतों की सम्पूर्ण आराधना तो बड़ी कठिन होती है। वह कौन-सी
पद्धति है जिससे साधु इनकी सम्पूर्ण आराधना कर लेते हैं। मुनिवर ---इन पांच व्रतों के सम्पूर्ण पालन के लिये आठ नियम और बतलाये
गये हैं, जिनको शास्त्रों में अष्ट प्रवचन माता का नाम दिया गया है। जिस तरह मां अपने बच्चे का पूरा ध्यान रखती है उसी तरह ये समिति गुप्तियां साधु की पूरी सुरक्षा करती हैं । ये समितियां पांच और गुप्तियां तीन हैं। समिति का अर्थ है --- सम्यक् प्रवृत्ति और गुप्ति का अर्थ है--निवृत्ति यानि योगों की चंचलता समाप्त कर आत्मलीन होने
का अभ्यास। कमल---ये पांच समितियां और तीन गुप्तियां कौन-कौन सी हैं, थोड़ा विस्तार
से बताने की कृपा करें। मुनिवर-यही बता रहा हूँ। पांच समितियों में पहली है, ईर्या समिति- हर
कदम देखकर चलना, दूसरी है भाषा समिति-विचारपूर्वक बोलना, तीसरी है एषणा समिति-भोजन, पानी आदि वस्तुओं को विधिपूर्वक ग्रहण करना, चौथी है आदान निक्षेप समिति-वस्त्र, पात्र आदि उपयोगी वस्तुओं को संभालकर रखना, पांचवीं है उच्चार प्रस्रवण ममिति-- मल-मूत्र आदि का विधि से उत्सर्ग करना, जिससे किसी को घृणा न हो। तीन गुप्तियों में पहली है मनोगुप्ति-मन की चंचलता को रोकना, दूसरी है वचन गुप्ति-वाणी की चंचलता को रोकना, तीसरी है कायगुप्ति-शरीर की चंचलता को रोकना । ये आठ नियम कवच के समान हैं। समिति, गुप्ति से भावित साधु के व्रतों को कोई खतरा नहीं रहता। खेत की सुरक्षा के लिये जे से बाड़ का
महत्त्व है वैसे ही महावतों की रक्षा के लिये इनका महत्त्व है। विमल---साधु की परिभाषा और उसके महावतों के बारे में आपने बताया पर
एक कठिनाई भी है हमारे सामने मुनिवर ! मुनिवर-वह क्या ? विमल-बात ऐसी है। साधु के रूप में घूमने वालों की इस दुनिया में कमी
नहीं है। हम किसको शुद्ध साधु कहें व किसको अशुद्ध ? मुनिवर-यही प्रश्न आज से दो शताब्दियों पूर्व महामना आचार्य भिक्षु से
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