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सुनिवर
बात-बात में बोध --- जब तक आयुष्य का भोग बाकी रहता है तब तक वे शरीरधारी या साकार होते हैं और शेष चार कर्मों का नाश कर जब वे मुक्त हो जाते हैं, सिद्धत्व को पा लेते हैं तो निराकार हो जाते हैं । कमल - क्या अर्हतों का कोई नाम भी होता है ?
मुनिवर - नाम और रूप तो हमारी पहचान के प्रमुख अंग हैं। इनसे हटकर कोई भी संसारी आत्मा नहीं रह सकती है ।
विमल – अब बतायें, हम देव रूप में किस नाम का स्मरण करें ?
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मुनिवर -- यों तो हर युग में २४ धर्मदेव तीर्थङ्कर होते हैं । इस युग में भी ऋषभ आदि चौबीस तीर्थङ्कर हुए हैं । हमारे आसन्न उपकारी व वर्तमान तीर्थ के प्रवर्तक होने के कारण हम भगवान महावीर का नाम देवरूप में स्मरण करते हैं ।
कमल--- - पर भेरूं, भवानी, रामदेवजी, पीतरजी को भी तो दुनिया देव मानकर पूजती है, इसके पीछे क्या कारण है ?
सुनिवर - ये सब लौकिक देव हैं । लोक परम्परा में प्रचलित इस तरह के अगणित देव हैं पर इनको धार्मिक देव नहीं कहा जा सकता । विमल - क्या वर्तमान काल में कोई धर्म देव हमारे लोक में हैं ?
मुनिवर - हमारी धरती के अलावा एक दूसरी धरती है जिसका नाम महाविदेह क्षेत्र है, जहां अभी सीमंधर स्वामी आदि अनेक धर्मदेव हैं । वह ऐसी धरती है जहां इस भूभाग से किसी मनुष्य का पहुंच पाना असंभव है । हमारे इस भरत क्षेत्र में अभी कोई अहंत नहीं है। उनका चलाया हुआ शासन है । अर्हतों की अनुपस्थिति में उनके शासन की संभाल आचार्य करते हैं । वे धार्मिक गुरु कहलाते हैं 1
कमल - देव के स्वरूप को हमने जाना, अब आप गुरु के बारे में बताने की कृपा करें।
मुनिवर - शुद्ध साधुओं को गुरु कहा जाता है ।
विमल - शुद्ध साधु की परिभाषा क्या है ?
मुनिवर - जो तप, संयमयुक्त साधना के द्वारा अपनी आत्मा को भावित करता है ।
कमल - मुनिवर ! साधना का भी कोई प्रारूप ?
मुनिवर - हां, है । भगवान् महावीर ने पांच महाव्रत रूप साधना साधुओं के लिये विहित बतलायी है। वे पांच महाव्रत हैं - १. अहिंसा २० सत्य ३. अचौर्य ४. ब्रह्मचर्य ५ अपरिग्रह । एक शुद्ध साधु किसी भी प्रकार की जीव हिंसा नहीं करता है, न कभी मिथ्या संभाषण करता है, न
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