________________
देव
गुरु और धर्म
( धर्मस्थान, मुनिराज पट्ट पर आसीन हैं, उनके सामने विमल, कमल दोनों भाई कर बद्ध बैठे हैं ।)
विमल, कमल - ( वंदना करते हुए) वन्दे मुनिवरम् वन्दे मुनिवरम् । मुनिराज -- आज तो एक ही दिन में दूसरी बार आ गये हो ।
विमल - तहत मुनिवर ! यह आपकी ही कृपा है। एक समय था जब दादीजी व मां हमको कहते कहते थक जाती किन्तु यहाँ आने की प्रेरणा ही नहीं जगती थी । किन्तु अब तो आपके वचनों ने हमको इस तरह बांध दिया है कि जब घर से बाहर निकलते हैं तो पाँव धर्मस्थान की ओर ही बढ़ने लगते हैं ।
कमल - महाराज ! जहां कुछ उपलब्धि नजर आती है व्यक्ति स्वतः ही खींचा चला आता है । हमको भी यहां आने में एक सार्थकता का अहसास होने लगा है ।
मुनिराज - ऐसी भावना पैदा होना भी व्यक्ति का सौभाग्य है ।
विमल - पर इस सौभाग्य को जगाने वाले आप ही हैं। हम तो जो पुस्तकों व पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ते थे उसी को परिपूर्ण ज्ञान मान रहे थे, अब लग रहा है कि ज्ञान का विशाल समन्दर तो अभी हमारे से अज्ञात ही पड़ा है । हमें अपनी नादानी पर बड़ी हंसी आ रही है । भी है कि आज तक हम परम तत्त्व से वंचित ही रहे होते हुए भी उसमें डुबकी नहीं लगा सके ।
साथ में अफसोस
।
घर में गंगा
मुनिराज - खैर, "बीती ताहि विसारदे, आगे की सुधलेय" कहावत के अनुसार तुम भी बीते समय पर विचार मत करो । अब भी तुमने करवट ली है यह अच्छा है, तुम्हारे शुभ भविष्य का सूचक है । अब कहो, कोई जिज्ञासा हो तो या फिर मैं ही अपनी इच्छा से किसी विषय का विश्लेषण करूं ।
कमल- जिज्ञासा तो आपने जगादी है, अब हम ही अपनी बात प्रारम्भ कर दें । मुनिवर ! सम्यक्त्व की व्याख्या में आपने देव, गुरु और धर्म
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org