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बात-बात में बोध
है। कवच पहने हुए योद्धा की तरह मन्त्र की साधना करने वाले को भी बाहरी व भीतरी आक्रमणों को झेलने की अपार क्षमता प्राप्त हो
जाती है। क्रोधादि विकार उसकी आत्मा को कलुषित नहीं करते। कमला-मन्त्र के जप में श्रद्धा की सघनता परमावश्यक है ही, क्या और भी
कोई प्रयोग साथ में जोड़ना चाहिए। मुनि मतिधर-श्रद्धा के साथ ही, जिस लक्ष्य को व्यक्ति पाना चाहता है उसके
अनुरूप अनुप्रेक्षा का प्रयोग भी जोड़ देना चाहिए। तपन-मुनिवर ! यह अनुप्रेक्षा शब्द मेरे लिए नया है । इसका अर्थ स्पष्ट
___ करावें। मुनि मतिधर-अनु और प्रेक्षा दो शब्दों का यह युग्म है। प्रेक्षा का अर्थ होता
है 'गहराई से देखना ।' अनुप्रेक्षा का अर्थ-जो सत्य देखा व जाना या जिसे देखना व जानना है उसी का चिन्तन तथा बार-बार विचार करना। जैसे-कलह निवारणके लिए मैत्री की अनुप्रेक्षा, भय निवारण के लिए अभय की अनुप्रेक्षा, रोग मुक्ति के लिए आरोग्य भाव की अनुप्रेक्षा आदि । एक बात और ध्यान देने की है, वह है-विधिवत किया हुआ जप ही फलदायी होता है। इसलिए जप की विधि का सम्यग ज्ञान होना भी जरूरी है। अविधि या रूढि से जप करने वालों के लिए कबीर जैसे सन्त कवि को कहना पड़ा
कर में तो माला फिरे, जीभ फिरे मुख मांहि,
मनवा तो चिहु दिशि फिरे, यह तो सुमिरन नाहिं । केवल हाथ में लेकर माला फेरने से व मुंह से नमस्कार महामन्त्र का पाठ करने से वह सिद्ध नहीं हो जाता है । मन्त्र जप के प्रकार व इसकी
विधियों का ज्ञान होना भी जरूरी है। तपन-यह जानकारी आपको ही देनी होगी मुनिराज! मुनि मतिघर-मन्त्र का जप करने के मुख्य रूप से दो प्रकार हैं-पहला
मानस जप, दूसरा वाचिकानप। मानस जप का अर्थ है केवल मन में मन्त्र का स्मरण करना, वाचिक जप का अर्थ है बोलकर स्पष्ट रूप से मन्त्र का जप करना। नमस्कार महामन्त्र का जप करने की कई विधियां हैं। पहली विधि है-पांचों पदों को अलग-अलग स्थान और रंगों के साथ जोड़ देने की। जैसे-णमो अरहताणं के जप को ज्ञान केन्द्र (मस्तक में चोटी का स्थान) पर श्वेत रंग के साथ, णमो सिद्धाणं के जप को दर्शन
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