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बात-बात में बोध
मुनि-नहीं-नहीं, इतना आसान नहीं है। तत्त्व की गहराई में उतरने वाले
बहुत कम लोग होते हैं। संसार के अधिकतर लोग तो ऐसे हैं जिनकी
नजर में चेतन और अचेतन में कोई भेद ही नहीं है । विमल-इस भेद को कैसे जाना जा सकता है ? मुनि-इसके लिए जीव और अजीव का समग्र ज्ञाम करना जरूरी है। इसका
विस्तृत रूप नौ तत्त्व और षड् द्रव्य है। इसके साथ ही तीन तत्त्वों
की भी सम्यग जानकारी और श्रद्धा होनी जरूरी है ? कमल-वे फिर कौन से हैं ? मुषि-वे है देव, गुरु और धर्म । देव-वीतराग, अरहन्त जिन्होंने श्रेय कोपा
लिया, गुरु-मोक्ष मार्ग को बताने वाले, धर्म-मोक्ष प्राप्ति का मार्ग । इन तीनों की सही पहचान होनी जरूरी है। यह सम्यक्त्व की
व्यावहारिक परिभाषा है। विमल-तो क्या निश्चय दृष्टि से परिभाषा कुछ और है ? मुनि-हां, निश्चय दृष्टि से सम्यक्त्व है-अनन्तानुबन्धी कषाय की चार व
सम्यक्त्व मोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय और मिश्र मोहनीय इन तीन प्रकृतियों की सम्पूर्ण अनुदयावस्था या आंशिक अनुदयावस्था में होने
वाली उपलब्धि। कमल-मुनिराज ! कुछ समझे महीं। मुनि-ये जैन दर्शन के पारिभाषिक शब्द हैं, मैं तुमको समझाने की चेष्टा
करूंगा। मोहनीय कम के दो भेद हैं १. दर्शन मोहनीय २, चरित्र मोहनीय । सम्पक्त्व मोहनीय आदि तीन दर्शन मोहनीय की प्रकृतियां हैं और अनन्तानुबन्धी कषाय की चार प्रकृतियां चरित्र मोहनीय की है। इसका अर्थ है-एक सीमा तक क्रोध, मान, माया और लोभ का अल्पीकरण। अनन्तानुबन्धी क्रोध की पत्थर की रेखा से, मान की पत्थर के स्तम्भ से, माया की बांस की जड़ से, लोभ की कृमि रेशम के रंग से तुलना की जा सकती है। सम्यक्त्व के अधिकारी व्यक्ति में
इस तरह के तीव्र क्रोध, मान, माया व लोभ नहीं होने चाहिए । विमल-निश्चय सम्यक्त्व की परिभाष के अनुसार कौन सम्यक्त्वी है. कौन
नहीं, क्या पता चलेगा ? मुनि-ठीक बात है। यह निश्चय तो ज्ञानी पुरुष ही कर सकते है, हम तो
व्यवहार के स्तर पर ही सोचते हैं। उसी के आधार पर कहते हैं, अमुक व्यक्ति सम्यक्त्वी है। जिस प्रकार धुएँ को देखकर अग्नि का,
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