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बात-बात में बोध निकालने लगा। स्वामीजी शांत भाव से उसकी गालियों को सुनते रहे
और मुस्कुराते रहे। कुछ क्षण बाद वे बोले-मित्र ! एक छोटे से शब्द ने तुम्हारे भीतर बेठे राक्षस को जगा दिया और तुम अनर्गल बोलने लग गये, फिर भी कहते हो कि शब्द में क्या शक्ति है । वह व्यक्ति स्वामीजी के चरणों में प्रणत हो गया और अपने कृत्य पर पछताने लगा। इस घटना प्रसंग से तुमको भी विश्वास हो गया होगा कि शब्द में असीम शक्ति छिपी होती है। नमस्कार महामन्त्र के वर्गों की संयोजना तो और भी महत्त्वपूर्ण है । मन्त्र की महिमा बताते हुए आचार्यों ने लिखा है'यह महामन्त्र सब पापों को नाश करने वाला व मंगलों में पहला
मंगल है। तपन--इस मन्त्र से पापों का ही नाश होता है या कुछ और भी लाभ
मिलता है ? मुनि मतिधर-इस महामंत्र के स्मरण से आन्तरिक व वाह्य दोनों तरह के लाभ
होते हैं । आन्तरिक लाभ हैं --पापों का शमन, कषायों का अल्पीकरण, चित्त की प्रसन्नता, विचारों की पवित्रता आदि । बाह्य लाभ हैंशारीरिक व मानसिक व्याधियों का नाश, बुद्धि का विकास, पारस्परिक प्रेम की वृद्धि, ग्रह व उपद्रवों की शांति, भौतिक
अभिसिद्धियां आदि। कमला-मुनिवर ! आप इसको कोई ऐसी घटना सुनाये जिससे महामंत्र का
प्रभाव प्रकट होता हो। मुनि मतिधर---अवश्य । एक बार मगध के सम्राट श्रेणिक ने अपनी राजधानी
में एक सुन्दर राजमहल बनवाना शुरू किया। कुछ ऐसा ही संयोग बनता कि जे से ही महल बनकर तैयार होता, ढह जाता । ज्योतिषियों ने राजा से निवेदन किया-राजन् ! महल की सुरक्षा के लिए बत्तीस लक्षणों वाले पुरुष की बलि देनी होगी। राजा ने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि कोई अपने पुत्र को बलि चढ़ाने हमें अर्पित करेगा उसे उतना ही सोना बदले में दिया जायेगा। भद्रा नाम की स्त्री सोने के लालच में आकर अपने लड़के अमर को बलि देने के लिए तैयार हो गई। रानी को जब इस बात का पता चला तो उसने राजा से बहुत अनुनय किया कि ऐसा अमानवीय कार्य न करवायें। रानी की बात का कोई असर नहीं हुआ । निरूपाय रानीखना ने अमर कुमार को नमस्कार महामन्त्र की आराधना की बारही। ज्योंही बालक
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