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जैन धर्म और विज्ञान
विद्यालय के शरीर क्रिया विज्ञानी एडवर्ड जे० मसोरों ने बूढ़े चूहों पर एक प्रयोग किया। उन्होने चूहों को भोजन को सामान्य केलोरी में ४० प्रतिशत कटौती कर दी, साथ में उनको कुपोषण से भी बचाया। निष्कर्ष यह आया कि वे चूहे पहले की अपेक्षा फूतीले व स्वस्थ पाये गए। उन चूहों की उप्र ५० प्रतिशत बढ़ गई । बुढ़ापे का मुख्य कारण बनता है-~भोजन का असंयम और तनावग्रस्त दिमाग। ११५ वर्षीय संत महंत गिरिजी से उनके दीर्घ जीवन का रहस्य पूछा गया तो उन्होंने बताया-संयम ही इसका राज है। शरीर रूपी मशीन के पुजं जितने कम घिसेंगे उतनी ही अधिक उम्र तक वह काम देगी। खान-पान के सम्बन्ध में कुछ पदार्थों के लिए भगवान महावीर ने एकदम निषेध किया है, जैसे-शराब, अण्डा, मांस, धूम्रपान आदि । अध्यात्म विज्ञान ही न हों, शरीर विज्ञान भी इनका सेवन वर्जनीय मानता है। इन पदार्थों से जहां आत्मा का पतन व मन की मलिनता निष्पन्न होती है, वहां शरीर का तन्त्र भी अव्यवस्थित होता है । अनेक प्रकार की बीमारियां बिना बुलाए अतिथि बन आती हैं। जवानी में ही बुढ़ापा अपना अड्डा जमाने लगता है। अत्यधिक मात्रा में इनका सेवन मृत्यु का कारण भी बन सकता है। अमेरिका में आयोजित मनोचिकित्सक व नाड़ी तन्त्र विशेषज्ञों के सम्मेलन में एक प्रस्ताव पास किया गया कि शराब मस्तिष्क व अन्य तन्तुओ के लिए जहर का काम करती है। इसके सेवन से पागलपन, हिस्टीरिया, मन की दुर्बलता व कई प्रकार की मानसिक बीमारियां उत्पन्न होती हैं। मनुष्य मात्र को मद्यपान से दूर रहना चाहिए । डा. लाईवर ने कुछ बन्दरों पर मद्यपान का प्रयोग किया। कई दिनों तक निरन्तर शराब पिलाने से उनके जिगर मोटे हो गये, पाचनतन्त्र खराब हो गया और कुछ ही दिनों में उनकी मृत्यु हो गई। महात्मा गांधी ने कहा था--"मैं मदिरापान को चोरी व वेश्यावृत्ति से भी अधिक निन्दनीय मानता हूँ। क्या शराब इन दोनों अपराधों की जननी नहीं है ? अपराधों की बढ़ती हुई संख्या पर रोक लगाने के लिए शराब पर रोक लगाना जरूरी है । अण्डा व मांस भी स्वास्थ्य की दृष्टि से अहितकर है। वैज्ञानिक . डा० विलियम्स ने प्रयोगों द्वारा सिद्ध कर दिया कि अण्डे की सफेदी में एवीडिन नामक भयानक तत्त्व होता है जो एग्जिमा जैसी बीमारी का कारण बनता है। जिन जानवरों को अण्डे खिलाये गये उनको
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