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जैन धर्म और विज्ञान
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अभिनिवेश को छोड़कर वस्तु स्थिति को स्वीकार करना चाहिए व
अहिंसा को देश की गुलामी से नहीं जोड़ना चाहिये । ओमप्रकाश-क्या अहिंसा के द्वारा हर समस्या का समाधान सम्भव है ? मुनिवर-संसार को अगर चलना है तो हिंसा और अहिंसा दोनों की सत्ता को
स्वीकार करके ही चलना होगा। जिस दिन मानव समाज पूरा हिंसक बन जायेगा उस दिन संसार नहीं रहेगा, वह श्मशान बन जायेगा। सब अहिंसक बन जायेंगे तो भी वह संसार नहीं, मुक्तिधाम बन जायेगा। संसार में समस्याएं अनेक प्रकार की है। अहिंसा के द्वारा कोई रोटी की समस्या या अर्थ की समस्या का हल खोजना चाहे तो वह कैसे संभव होगा, उसके लिये तो उद्यम करना पड़ेगा। स्पष्ट है कि वहां अहिंसा कारगर नहीं हो सकती। पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय कई अपेक्षाएं ऐसी हैं जिनमें केवल अहिंसा से काम नहीं चल सकता । पर जैन धर्म कहता है आवश्यक हिंसा को तुम हिंसा समझो, अहिंसा मत समझो । दृष्टि को शुद्ध रखो। बहुत सारी समस्याएँ ऐसी भी हैं जिनका अहिंसा से समाधान हो सकता है। जैसे---मिलावट, शोषण, बढ़ते हुए अपराध, दहेज, बलात्कार आदि । अहिंसक व्यक्ति का हृदय करुणाशील होगा। वह दूसरों का दिल दुखे ऐसा कार्य नहीं कर सकता, चीजों में मिलावट नहीं कर सकता, स्वार्थ पूर्ति के लिए गरीबों का शोषण नहीं कर सकता, दहेज की मांग नहीं कर सकता, अबलाओं पर दुराचार नहीं कर सकता । अहिंसक समाज की समस्याएं बहुत कम होती हैं । अहिंसा की प्रतिष्ठा जिस दिन जनजीवन में हो जायेगी वह दिन मानव जाति के लिये
मंगलमय होगा, धरती पर स्वर्ग की छटा नजर आने लगेगी ! ओमप्रकाश---मुनिवर । पर्यावरण प्रदूषण आज की अहं समस्या है, क्या इस
भी समाधान अहिंसा के पास है ? मुनिवर-अहिंसा का सिद्धान्त समस्त प्राणियों के लिए हितकारी है। महावीर
की अहिंसा मनुष्य, पशु व पक्षियों तक ही सीमित नहीं है। पृथ्वी, पानी, अग्नि, हवा व वनस्पति का शोषण भी उसको अमान्य है। शायद इतनी सूक्ष्मता से अहिंसा का विश्लेषण किसी भी महापुरुष ने अब तक नहीं किया होगा। पृथ्वी आदि तत्त्वों का शोषण ही पर्यावरण प्रदूषण का मुख्य कारण बनता है। आज खनिज पदार्थों की प्राप्ति के लिए धरती का अतिरिक्त मात्रा में
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