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जैन धर्म और विज्ञान
लेने के लिए आदमी को नगर छोड़कर गांवों में रहने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। वायुमण्डल के बढ़ते हुए प्रदूषण का एक परिणाम और भी आया है और वह है आकाश में स्थित ओजोन परत को खतरा उत्पन्न होना । ऑक्सीजन का स्रोत यह ओजोन परत ही है, साथ ही सूर्य के प्रकाश से पराबैंगनी विकिरणों को भी रोकने में यह परत छरती का काम करती है। सूर्य के विकिरण अगर सीधे धरती पर आने लगें तो उनको सह पाना कठिन होता है और अनेक प्रकार की बीमारियों से आदमी का जीवन संकट में पड़ सकता है। विश्व के वैज्ञानिक ओजोन परत के स्थान-स्थान पर टूटने से बड़े चिन्तित हैं । उनका मानना है कि यह परत अगर बराबर टूटती रही तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि बिना किसी अणुयुद्ध के ही मानव जाति का अस्तित्व सदा के लिए समाप्त हो जाये। ओजोन परत की क्षति को रोकने के लिए कुछ समय पूर्व मांट्रियल (कनाडा) में सम्पन्न एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में एक निर्णय लिया गया कि क्लोरोफ्लू अरों कार्बनों के प्रयोग में ५० प्रतिशत कटौती की जाये, धुआं व प्रदूषण फैलाने वाले संयंत्रों को नियन्त्रित किया जाये।
अनेक राष्ट्रों ने इस निर्णय को स्वीकार भी किया ।। ओमप्रकाश-तो क्या वायु प्रदूषण को रोकने के लिए जैन धर्म बड़े कारखानों
व फेक्टियों के पक्ष में नहीं है ? मुनिवर -कारखाने व फैक्ट्रियां किसी भी देश की समृद्धि के अंग होते हैं ।
इनका निषेध शायद देशहित की दृष्टि से अव्यावहारिक हो सकता है। ऐसा विकल्प अवश्य खोजने की जरूरत है जिससे फैक्ट्रियां होने पर भी प्रदूषण नियन्त्रण में रहे। कुछ देशों में इस प्रकार के संयन्त्रों का विकास हो गया है जिनको कारखानों में लगा देने से प्रदूषण नहीं फैलता। भारत में ऐसी व्यवस्था कहीं कहीं दिखाई देती है पर अभी पूरी तरह विकसित नहीं हुई जिससे प्रदूषण पर रोक लग सके । लघु उद्योगों का विस्तार भी इसका एक विकल्प हो सकता है। महात्मा गांधी लघु उद्योगों को पसन्द करते थे। वे लघु उद्योगों को उपयोगी बताते हुए कहा करते थे "लघु उद्योगों से श्रम की प्रतिष्ठा बढ़ती है और बेरोजगारी की समस्या का भी समाधान होता है ।" बड़े उद्योगों के कारण सौ व्यक्तियों का काम पांच दस व्यक्तियों में सिमट जाता है और शेष व्यक्ति बेकार हो जाते हैं। बेकार आदमी स्वयं में एक
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