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जैन धर्म और विज्ञान
उनको एकाकी देखकर वह दैत्यरूप भरी पिस्तौल लिये सम्मुख आया। कालूगणी की अभयदायिनी व अमृतरसवर्षिणी मुखमुद्रा को देखकर उसका अन्तःकरण पूरी तरह बदल गया। वह उनके पावन चरणों में गिर पड़ा और अपने गलत इरादे पर पश्चात्ताप करने लगा। यह उस महापुरुष की अहिंसा व करुणा का ही प्रभाव था। चम्बल की घाटी में दुर्दान्त डाकुओं का हृदय परिवर्तन व समर्पण अहिंसा की शक्ति का एक सुनहरा पृष्ठ है। सरकार जिनको बल प्रयोग के द्वारा नहीं पकड़ सकी, लोकनायक जयप्रकाश नारायण के अहिंसात्मक प्रयत्नों से वे सैंकड़ों डाकू सदा के लिये बदल गये व उनके आगे समर्पित हो गये, महावीर, बुद्ध, ईसा आदि महापुरुषों का
जीवन तो ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है । ओमप्रकाश-क्या विश्व चेतना को भी अहिंसा प्रभावित कर सकी है ? मुनिवर-कौन ऐसा राष्ट्र है जो हिंसा, अशान्ति व युद्ध को पसन्द करता है ।
पूरा विश्व शान्ति चाहता है। इसी में हर राष्ट्र की सुख समृद्धि सुरक्षित है, युद्ध की एक चिनगारी उठते ही चारों ओर से उसे बुझाने का प्रयास शुरू हो जाता है । क्या यह अहिंसा का प्रभाव नहीं है । आज तो विश्व की सर्वोच्च शक्तियां जिनके पास सामरिक अस्त्र शस्त्रों का विशाल जखीरा पड़ा है, वे अमेरिका और रूस भी अहिंसा में अपना विश्वास प्रकट कर रहे हैं। कुछ ही समय पूर्व दोनों महाशक्तियों में जो समझोता हुआ, उसके अनुसार मध्यम दूरी तक मार करने वाले प्रक्षेपास्त्रों का कोई भी महाशक्ति उपयोग नहीं करेगी व उन हथियारों को क्रमशः समाप्त कर देगी, यह अहिंसा निष्ठा का प्रबल प्रमाण है। २७ नवम्बर १९८७ को भारत के प्रधानमन्त्री राजीव गांधी और सोवियत नेता गोर्वाच्योव द्वारा जो दस सूत्री 'दिल्ली घोषणा पत्र' पर हस्ताक्षर किये गये व अहिंसा, सदभाव, शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति को स्वीकार किया गया, यह भी अहिंसा की प्रतिष्ठा का बेजोड़ उदाहरण है। भगवान महावीर का एक वाक्य है-- "अस्थि सत्थं परेण परं, णत्थि असत्थं परेण पर” शस्त्रों की परम्परा आगे से आगे चलती रहती है किन्तु अशस्त्र की स्थिति में, अहिंसा को स्वीकार कर लेने पर शस्त्रो की कोई परम्परा नहीं चलती। इस वाक्य की महत्ता आज चरितार्थ हो रही है।
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