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बात-बात में बोध
सदी में महात्मा गांधी ने राजनीति में अहिंसा का प्रयोग किया । उन्होंने एक बार कहा था "अहिंसा द्वारा अगर पच्चास वर्ष बाद भी देश को आजादी मिले तो मुझे मंजूर है, हिंसा के द्वारा आज भी आजादी मिले तो मुझे नहीं चाहिए। एक दिन इसी अहिंसा के द्वारा उन्होंने अंग्रेजों के चंगुल से देश को मुक्त कराया था । क्या वे सब
महापुरुष कायर और दब्बू थे । ओमप्रकाश - पर यह भी सच है कि सब भगवान् महावीर, गौतम, ईसा और महात्मा गांधी नहीं बन सकते । क्या आम आदमी अहिंसा का रास्ता स्वीकार कर लोगों की नजर में कायर नहीं कहलायेगा ? साथ ही क्या अहिंसा के द्वारा वह विरोध का प्रतिकार कर सकेगा ?
मुनिवर -- पूरी निष्ठा से व्यक्ति अगर
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अहिंसा को स्वीकार कर ले तो यह अभियोग स्वतः ही मिथ्या सिद्ध हो जाये। अगर वह लेबल अहिंसक का लगाता है और सहारा हिंसा का लेता है तब तो उसकी बदनामी को कौन रोक सकता है । कायर वह व्यक्ति होता है जो विरोधों से घबराकर भग जाये । अहिंसक व्यक्ति पलायनवादी नहीं होता । वह विरोधों में भी मुस्कुराता रहता है, क्षमा और प्रेम के द्वारा विरोधी को भी वह अपना बना लेता है ।
एक बात और ध्यान में रखने की है कि अहिंसा की नीति को स्वीकार करने का अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति हिंसा से पूरी तरह मुक्त हो जाता है । वह संसार में जीता है, पारिवारिक सामाजिक जिम्मेवारियों को लेकर चलता है, परिग्रह से जुड़ा हुआ है इसलिए हिंसा उसके साथ अनिवार्यतया जुड़ी होगी ही । लेकिन उसका विश्वास समता, प्रेम व मैत्री में होगा । वैर, घृणा के द्वारा वह विरोध को और अधिक प्रज्ज्वलित करना नहीं चाहेगा । ओमप्रकाश - क्या अहिंसात्मक तरीके से व्यक्ति को बदला जा सकता है ?
वि० सं० १६७६ में वातावरण प्रबल था । सीमित नहीं थे, इससे
मुनिवर - निस्संदेह बदला जा सकता है। तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य श्री कालूगणी के जीवन का मार्मिक प्रसंग है । उनका चातुर्मास बीकानेर में था । विरोध का विरोधी लोग प्रदर्शन और छापाबाजी तक ही भी आगे वे कालुगणी की हत्या करने की उन्होंने एक व्यक्ति को प्रलोभन देकर इसके लिये तैयार कर लिया । कालगणी स्थंडिल भूमि के लिये जहां जाते उस स्थान पर वह व्यक्ति हाथ में पिस्तौल लेकर छिप गया। जैसे ही कालगणी वहाँ पधारे
योजना बना रहे थे
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