________________
१६
बात-बात में बोध
मुनिवर -- पीलिया के बीमार को सर्वत्र वस्तुएँ पीली ही नजर आती हैं, यह उसकी नजर का दोष है न कि वस्तु का । वैसे ही जो मिथ्या अभिनिवेश से रुग्ण हैं उनको दोनों एक समान लगे तो यह उनके सोच की ही कमी है। आत्म हत्या में भावुकता, जीवन से पलायन, निराशा व आक्रोश जैसी दूषित भावनाओं की प्रधानता रहती है, जबकि अनशन में गहरी सूझबूझ, पवित्र भावना और देह - पार्थक्य का बोध प्रमुखतया रहता है । तटस्थ दृष्टि से सोचने वालों के लिए अनशन और आत्म हत्या का फर्क सहज गम्य है।
}
ओमप्रकाश - मेरे एक मित्र कह रहे थे कि जैन धर्म ने रात्रि भोजन को वर्जनीय माना है, यह कहां तक व्यावहारिक है ?
मुनिवर- यह सिर्फ मुनिजनों के लिए अनिवार्यतया वर्जनीय है 1 सामान्य व्यक्ति के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है । यह अवश्य है कि जैन धर्म रात्रि भोजन को अच्छा नहीं मानता । अगर आदमी इससे बच सके तो उनके लिए हितकर ही होगा ।
ओमप्रकाश - मैं यही जानना चाहता था कि रात्रि भोजन निषेध पर बल देने
के पीछे क्या कारण है ?
मुनिवर - इसके पीछे आध्यात्मिक दृष्टिकोण तो यह है कि रात के समय भोजन करने से अनेक जीव जंतुओं का भक्षण होने की संभावना बनी रहती है। रात्रि भोजन अनेक बीमारियों को न्योता देता है । पकाने के बर्तन में अगर कोई जहरीला जन्तु हो तो मृत्यु तक की घटनायें भी घटित हो जाती है । कुछ वर्षों पूर्व की बात है । रात के समय एक बहिन भोजन तैयार कर रही थी। कढ़ी जिस बर्तन में पका रही थी, उसमें मन्द प्रकाश के कारण पता नहीं चला और एक foreiी गिर गई । वह कढ़ी जिन्होंने खाई, सुबह वे मृत मिले छिपकली गिरने का भी पता नहीं चलता है तो सूक्ष्म जीवों की तो बात ही क्या की जाये। मुख्यतया जीव हिंसा से बचने के लिये जैन धर्म रात्रि भोजन को वर्जनीय मानता है ।
ओमप्रकाश -क्या वैज्ञानिक दृष्टि से भी रात्रि भोजन वर्जनीय है ? मुनिवर - हाँ, वैज्ञानिक दृष्टि से भी रात्रि भोजन परित्याज्य है । वैज्ञानिकों का मानना है पाचन शक्ति के साथ सूर्य के प्रकाश का गहरा सम्बन्ध है। सूर्य के प्रकाश में भोजन करने से विटामिन डी. हमको पर्याप्त से प्राप्त होता है जो कि शरीर के लिए जरूरी है। वह सूर्यास्त के बाद उपलब्ध नहीं होता । हमारा विद्युत शरीर सूर्य के प्रकाश के.
रूप
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org