Book Title: Bat Bat me Bodh
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 24
________________ जैन धर्म और विज्ञान मुनवर - ऐसा तो होना ही चाहिए । ओमप्रकाश - एक कठिनाई इन दिनों मेरे सामने आ रही है और वह है मेरे मित्रों की ओर से । मुनिवर -- कहिए, कौन-सी कठिनाई है ? ओमप्रकाश - बात यह है, जब से मैं जैन बना हूँ, मित्र लोग मेरे पर ताना कसते हैं - वाह रे ओमप्रकाश ! कहाँ फँस गये, जैन धर्म बढ़ा अवैज्ञानिक है, यह तो कायरों का धर्म है, भूखा रहने व जीतेज़ी मर जाने की बात सिखाने वाला धर्म है, इस तरह की बातें सुनता हूँ तो मन दुःख से भर जाता है। ऐसे पवित्र धर्म पर इस तरह के अभियोग सुनकर मेरा मन तिलमिला उठता है ! उनको मैं टोकता भी हूँ पर बिना युक्तिपूर्ण समाधान के उनकी बोलती बन्द नहीं कर पाता हूँ । मैं आपसे जैन धर्म के वैज्ञानिक स्वरूप को समझना चाहता हूँ । सुनिवर - दो तरीके हो सकते हैं समाधान के । पहला तो यह कि मैं अपने ढंग से जैन धर्म की वैज्ञानिकता को प्रस्तुत करूं और दूसरा यह कि आप अपने मित्रों के एक- एक आरोपों को मेरे सामने रखते जाएं, मैं उन सबका निरसन करता जाऊं। आप कौन सा तरीका पसन्द करेंगे । ओमप्रकाश - मैं ही एक-एक बात आपके सामने रखता जाता हूँ. आप उनका समाधान करते जाएं यही उत्तम रहेगा । ११ मुनिवर - अच्छी बात है, शुरू करें चर्चा को । ओमप्रकाश - पहली बात जो मेरे मित्र लोग मुझे कहा करते हैं कि जैन धर्म निवृत्ति प्रधान है । यह छोड़ो, वह छोड़ो बस इसी पर ज्यादा बल देने वाला है, क्या यह सही है ? मुनिवर - जैन धर्म न निवृत्ति प्रधान है और न प्रवृत्ति प्रधान । समन्वित Jain Education International For Private & Personal Use Only या फिर यों निवृत्ति की । असत् से निवृत्ति व कहें, जैन धर्म निवृत्ति और प्रवृत्ति दोनों का दुनिया में शायद ही कोई धर्म ऐसा होगा जो गौण करके एकान्त प्रवृत्ति की बात कहता हो सत् में प्रवृत्ति की बात को कोई भी धर्म व दर्शन अस्वीकार नहीं कर सकता । कोरी प्रवृत्ति जीवन के लिए घातक सिद्ध होती है । एक व्यक्ति दिन भर सोचता या बोलता ही रहे, दिन भर चलता या खाता ही रहे, यह सर्वथा असंभव है । वह मौन, विश्राम व खाद्य संयम के माध्यम से ही सुख से लम्बे समय तक जी सकता है । अत्यधिक प्रवृत्ति असंयम को बढ़ावा देती है और उसका परिणाम है— तनाव, बीमारियां, शीघ्र बुढ़ापा और शक्तिक्षय । रूप है । बात को www.jainelibrary.org

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