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जैन धर्म
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नवांगी जैन जीवन शैली का रूप दे दिया । इस जीवन शैली के दर्पण में हम जैन कहलाने वाले व्यक्ति की पहचान को झांक सकते है। जैन जीवन शैली के नौ अंग ये हैं
१) समानता - एक जैन धर्म का अनुयायी जातीयता के आधार पर किसी के साथ घृणा का व्यवहार नहीं करेगा, किसी को अस्पृश्य नहीं मानेगा ।
२) शांतवृत्ति - वह शान्त सहवास का अभ्यास करेगा । पारिवारिक कलह से बचेगा । दहेज आदि को लेकर कभी क्रूर व्यवहार नहीं करेगा ।
(३) श्रम - वह स्वावलम्बन का विकास करेगा । नहीं करेगा ।
आत्महत्या, परहत्या,
४) अहिंसा - वह अभय का विकास करेगा । भ्रूणहत्या नहीं करेगा । अनर्थ हिंसा से बचेगा | क्रूरतापूर्ण, हिंसा
जन्य प्रसाधन सामग्री से बचेगा ।
श्रम का शोषण
खाद्य
५) इच्छा - परिमाण - वह पदार्थों में मिलावट, तस्करी ( स्मगलिंग), अण्डे - मांस के व्यापार आदि के द्वारा अर्थार्जन नहीं करेगा। अर्जन के साथ स्वामित्व विसर्जन का प्रयोग करेगा। पदार्थ के परिभोग की सीमा करेगा ।
६) आहार-शुद्धि और व्यसन मुक्ति - वह खान-पान की शुद्धि रखेगा । मांस, मछली, अण्डे आदि का वर्जन करेगा । व्यसन मुक्त जीवन जीयेगा। शराव, नशीले पदार्थ, जुआ आदि से बचेगा । ७) अनेकान्त - वह दुराग्रह नहीं करेगा और विवादास्पद विषय में यथासम्भव सामञ्जस्य बिठाने का प्रयास करेगा ।
८) समता की उपासना -- वह स्वाध्याय, सामायिक आदि का अभ्यास करेगा । प्रतिदिन प्रातः उठने के पश्चात्, भोजन से पूर्व तथा सोने के पूर्व तीन वार पाँच-पाँच नवकार मंत्र का विधिपूर्वक जप करेगा । ६) साधर्मिक - वात्सल्य - वह साधर्मिकों के साथ भाईचारे का व्यवहार करेगा ।
विमल -- सिद्धान्तों की दृष्टि से ही नहीं जीवन व्यवहार की दृष्टि से भी यह धर्म दुनिया में सबसे श्रेष्ठ जान पड़ता है । ऐसे धर्म के प्रति हमारे मन में भी सहज भद्धा और आकर्षण का भाव है ।
कमल - ( विमल से ) मित्र ! ऐसे महान धर्म को हमें भी स्वीकार करना चाहिये और अपने जीवन को धन्य बनाना चाहिये ।
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