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3 है और अपने उत्तम सिंहासन पर पूर्व दिशा की तरफ मुख करके बैठते है।
१७) उसके बाद वह देवेन्द्र शक्रको इस प्रकार का चिन्तनरुप, अभिलाषारुप, मनमें संकल्प उत्पन्न हुआ कि - “ऐसा हुआ नहीं, होने योग्य नहीं ओर होनेवाला भी नहीं कि अरिहंत भगवान, चक्रवर्तीराजा, बलदेव, वासुदेव - है उम्रवंश के कुलो में, भोगवंशके कुलो में, राजन्य वंश के कुलो में, इक्वाकु वंश के कुलों में, क्षत्रियवंश के कुलों 卐 में, हरिवंशके कुलों में या दुसरे उसी प्रकार के विशुद्ध जाति, कुल और वंशवाले कुलों में आज पहले आये है, 2 वर्तमान में आते है और भविष्य में भी वे सब ऐसे उत्तमकुलों में आनेवाले है। १८) ऐसी भी लोक में आश्चर्यकारी
घटना, अनन्त अवसर्पिणी और अत्सर्पिणी व्यतीत होने पर होती है कि जब अरहंत भगवान विगेरे नाम, गोत्र कर्मका क्षय नहीं किया होता, इन कर्मका वेदन नहीं किया होता और उनके ये कर्म उनके आत्मा से नहीं गिरे 5 होते याने इन कर्मो का उदय होता है तब वैसे अरहंत भगवान , चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव राजा अन्त्यकलमें,R अधमकुलमें, तुच्छकुलमें, दरिद्रकुलमें, भिक्षुककुलमें, कंजुसकुलमें भी आये हुए है, आते है, आयेंगे यानि ऐसे हल्के है