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७३) “फिर, बलदेव की माताएं बलदेव के गर्भ में अने पर इन चौदह महास्वप्नों में से कोई भी चार बड़े स्वप्न में देखकर जाग्रत होती है।
७४) “मांडलिक राजा की माताएं जब मांडलिक राजा गर्भ में आता है तब इन चौदह महास्वप्नों में से कोई भी
एक महास्वप्न देखकर जगती है। ॐ ७५) “हे देवनुप्रिय! त्रिशला क्षत्रियाणीने यह चौदह महास्वप्न देखे है वे उदार और मंगलकारी महास्वप्न देखे 3 है। इसके कारण हे देवानुप्रिय! आपको रत्न सुवर्णादि व अर्थ का लाभ होगा। हे देवानुप्रिय। भोग का, पुत्र का,
सुख का, व राज्य का लाभ होगा। अन्ततः त्रिशला क्षत्रियाणी नौ महिने परिपूर्ण होकर उपरांत साड़े सात दिन बीत जाने पर आपके कुल में ध्वज समान, अति अद्भूत, कुल में दीपक समान प्रकाश करने वाला, मंगल करने वाला, कुल में पर्वत के समान स्थिर, तथा जिसका कोई भी दुश्मन पराभव न कर सके ऐसा, कुल में उत्तम होन से मुकुट समान, कुल को भूषित करने वाला होने से कुल में तिलक समान, कुल की कीर्ति करने वाला, कुल का निर्वाह
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