Book Title: Barsasutra
Author(s): Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publisher: Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai

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Page 213
________________ ज्ञानादि के विषय में शिथिल होते को स्थिर करने वाले और उद्यम करने वालों को उत्तेजना देने वाले स्थवीर को, ज्ञानादि के विषय में प्रवृति कराने वाले प्रवर्तक को जिसके पास आचार्य सूत्रादि का अभ्यास करते हैं उस गणि को तीर्थकर के शिष्य गणधर को, जो साधुओं को लेकर बाहर अन्य क्षेत्रो में रहते है, गच्छ के लिये क्षेत्र 3 उपधि की मार्गणा आदि में प्रधावन विगेरे करने वाले उपधि आदि को लाके देने वाले और सूत्र तथा अर्थ दोनों को 卐जानने वाले गणावच्छेदक को अथवा अन्य साधु जो वय और पर्याय से लघु भी हो परन्तु जिसको गुरूतया मानकर • विचरते है उसको । उस साधु को आचार्य यावत् जिसे गुरूतया मानकर विचरते हो उसे पूछकर जाना कल्पता है। प्र. हे भगवान ! ऐसा क्यों कहते है ? उ. सम्मति देने और नहीं देने मे आचार्यादि विघ्न के परिहार को जानते है। (२७५) इसी प्रकार विहार भूमि की ओर जाते या अन्य किसी प्रयोजन के होने पर या एक गाँव से दूसरे -गाँव जाते समय भी पूछकर जाना उचित है। अन्यथा वर्षा ऋतु में दूसरे गांव जाना सर्वथा अनुचित है । 00000000 207 For Private spesome

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