Book Title: Barsasutra
Author(s): Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publisher: Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai

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Page 220
________________ क उ. चातुर्मास में प्रायश्चित वहन करने के लिये या संयम के निमित्त छट्ट आदि करने वाले साधु-साध्वी होते । वे तपस्वी तप के कारण दुर्बल तथा कृश अंग वाले होते है अतः थकान लगने से या अशक्ति से कदाचित् कहीं मूर्छा आ जाय या गिर पडे तो उसी दिशा में या विदिशा में पीछे उपाश्रय में रहे साधु खोज करें । यदि 3 कहे बिना गया हुआ हो तो उसे कहाँ खोजने जायें। के (२८९) चातुर्मास में रहे हुए साधु-साध्वी को ग्लान, बीमार की सार संभाल के लिये या वैद्य के लिये चार या पांच योजन तक जाना आना कल्पता है। परन्तु वहाँ रहना नहीं कल्पता है। यदि अपने स्थान पर न पहुँच सकता हो तो मार्ग में भी रहना कल्पता है, परन्त उस जगह रहना नहीं कल्पता, क्योंकि निकल जाने से वीर्याचार का आराधन होता है, जहाँ जाने से जिस दिन वर्षा कल्पादि मिल गया हो उस दिन की रात्रि को वहाँ रहना नहीं कल्पता । वहाँ से निकल जाना कल्पता है। वह रात्रि उल्लघंन नहीं कल्पती । कार्य हो जाने पर तुरन्त ही निकलकर बाहर आ रहना यह भाव है। ल05000 214

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