Book Title: Barsasutra
Author(s): Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publisher: Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai

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Page 203
________________ • विराधना न करें, न पड़े । यद्यपि जिनकल्पी आदि कुछ कम दश पूर्वधर होने से प्रथम से ही वृष्टि का उपयोग कर लेते हैं इससे आधा खाने पर उठना पड़े यह संभवित नहीं हैं फिर भी छद्मस्थता के कारण कदाचित् अनुपयोग भी हो जावे । (२५५) चातुर्मास रहे हुए करपात्री (जिनकल्पी) साधु को कुछ कणमात्र भी स्पर्श हो इस प्रकार कम से कम सूक्ष्मतया गिरती वर्षा के समय आहार पानी के लिये गृहस्थ के घर की ओर जाना कल्पता नहीं । (२५६) चातुर्मास में रहे हुए पात्रधारी स्थवीर कल्पी आदि साधु को अविछिन्न धारा से वृष्टि होती हो अथवा जिससे वर्षा न काल में ओढ़ने का कपड़ा पानी से टपकने लगे या कपडे को भेदन कर पानी अन्दर के भाग में शरीर को भिगोवे तब गृहस्थ के घर के आहार पानी के लिये जाना नहीं कल्पता । कम बरसात बरसता हो तब अन्दर सूती कपड़ा और ऊपर ऊन का कपड़ा ओढकर भोजन-पानी के लिए गृहस्थ के घर जाना साधु को कल्पता है । (२५७) चातुर्मास में रहे हुए और भोजनार्थ गृहस्थ के घर में प्रवेश किये हुए साधु-साध्वी रह रहकर अन्दर से बरसाद । गिरता हो तब बगीचें में या पेड़ के नीचे जाना कल्पता हैं । उपर्युक्त स्थान पर जाने के पश्चात् अगर वहाँ साधु-साध्वी के पहुँचने के पूर्व ही पहेले से तैयार किये हुए भात (चावल) और बाद में पकाना प्रारंभ मसूर की दाल, उदड़ की दाल या • तेलवाली दाल हो तब उसे भात लेना कल्पता है किन्तु मसूरादि दाल लेना नहीं कल्पता है। Cation International For Private & Personal Use Only 197 1405014050140500140

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