Book Title: Barsasutra
Author(s): Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publisher: Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai

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Page 204
________________ 140501405014050140) वहाँ अगर उनके पहुँचने के पूर्व पहेले ही तैयार किये हुए दालादि मिलते हो और चावल उनके पहुँचने के पश्चात् तैयार किये हुए हो तो उनको दालादि लेना कल्पता है किन्तु चावलादि लेना कल्पता नहीं हैं। वहाँ उनके पहुँचने के पूर्व दोंनो वस्तुएँ तैयार की हुई हो तो उन्हें लेना कल्पता हैं। वहाँ उनके पहुँचने के पूर्व पहले से तैयार किये हुए हो तो उन्हें लेना कल्पता हैं, और उनमें से जो जाने के पश्चात् बनाया हुआ हो उनको लेना नहीं कल्पता । (२५८) चातुर्मास में रहे हुए और भिक्षा लेने की वृत्ति से गृहस्थ के घर में गये हुए साधु-साध्वियों को जब रूक रूक कर अन्तर से बरसाद बरसता हो तब उसे या तो बाग के पीछे या उपाश्रय के नीचे, चौपाल के नीचे, पेड़ के मूल में चला जाना कल्पता हैं। वहाँ जाने के पश्चात् भी पूर्व ग्रहण किया हुआ आहर और पानी रक्ख कर समय व्यतीत करना उचित नहीं, वहाँ पहुँचते, ही आहार को खाकर पात्र को साफ कर एक स्थान पर अच्छी तरह से बांधकर सूर्य शेष हो तब वहाँ से उपाश्रय की ओर जाना कल्पता है किन्तु रात वहाँ व्यतीत करना कल्पता नहीं हैं। (२५९) वर्षा काल में रहे हुए और आहारार्थे गृहस्थ के घर में प्रवेश किये हुए साधु-साध्वियों को जब रूक रूक कर अन्तर से बरसाद बरसता हो तब आराम (बगीचे) के नीचे या उपाश्रय के नीचे याव्त चला जाना उचित है। 198 40501405014050140

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