Book Title: Barsasutra
Author(s): Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publisher: Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 202
________________ बनता हो वहां जाना नहीं कल्पता । कितनेक ऐसा कहते है कि उपाश्रय से लगाकर आगे आये हुए घरों में जहां भोजन बनता है वहां निषेध घर का त्याग करने वाले साधु-साध्विओं को जाना कल्पना नहीं। कितनेक फिर इस प्रकार से कहते हैं कि उपाश्रय से लगाकर परम्परा से आये हुए घरों में जहां भोजन बनता हो वहां निषेध घर का त्याग करने वाले कहते है कि उपाश्रय * से लगाकर परम्परा से आये हुए घरों में जहां भोजन बनता हो वहां निषेध घर का त्याग करने वाले साधु-साध्वियों को जाना नहीं कल्पता । (२५३) वर्षाकाल में रहे हुए करपात्री साधु-साध्वी को कण मात्र भी स्पर्श होता हो इस प्रकार वरसाद गिरता हो अर्थात् । धूंध, ओस विगेरे अप्काय गिरने पर गृहस्थ के घर भोजन पानी के लिए जाना आना नहीं कल्पता । 3 (२५४) चातुर्मास रहे हुए कर पात्री जिनकल्पी आदि साधु को अनाच्छादित जगह में भिक्षा ग्रहण करके आहार करना नहीं 卐कल्पता । अनाच्छादित स्थान में आहार करते हुए यदि अकस्मात् वृष्टि पडे तो भिक्षा का थोड़ा हिस्सा खाकर और थोडा हाथ @ में लेकर उसे दूसरे हाथ से ढ़ककर रक्खे या कक्षा में ढक रखे, इस प्रकार करके गृहस्थ के आच्छादित स्थान तरफ जावे या वृक्ष के मूल तरफ जावे कि जिस जगह उस साधु के हाथ पर पानी के बिन्दु REC4 0000000019

Loading...

Page Navigation
1 ... 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224