Book Title: Barsasutra
Author(s): Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publisher: Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai

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Page 206
________________ 000000000000 यदि वहाँ पांचवा स्थवीर साधु या स्थवीरा साध्वी होनी चाहिये या वे दूसरों की नजर में देखा जा सके वैसे रहे हुए होना चाहिये अथवा घर से चारों ओर के दरवाजे खुले होने चाहिये, इस प्रकार उन्हें अकेला रहना उचित नहीं हैं। (२६१) इसी प्रकार से अकेली साध्वी और अकेला गृहस्थ का साथ रहने संबंधी भी चार भांगे जानना। (२६२) चातुर्मास में रहे हुए साधु -साध्वियों को 'मेरे लिये तुम लाना' जिसको ऐसा न कहा हो उस साधु को 'तेरे योग्य मैं लाऊँगा' ऐसी किसी को जानकारी दिये बिना साधु के निमित्त आहारादि लाना उचित नहीं। प्र. हे भगवान ! आप ऐसा क्यों कहते हो ? उ. दूसरे किसी के भी पूर्व कहे बिना, लाया हुई गोचरी (भोजन) को इच्छा हो तो दूसरा उस (गोचरी) को खाता है या नहीं भी खाय । (२६३) चातुर्मास रहे हुए निग्रन्थो या निग्रन्थनिओं को उनके शरीर से पानी गिरता हो या उनका शरीर आर्द्र 2003

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