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के कारण झुम रहे थे, ऐसे समय मध्यरात्री में उत्तराफाल्गुणी नक्षत्र के साथ चन्द्र का योग होने पर, आरोग्य वाली यानी बिल्कुल पीड़ा रहित ऐसी उस त्रिशला क्षत्रियाणी ने आबाधा रहित ऐसे पुत्र को जन्म दिया। ९४) जिस रात्रि में श्रमण भगवान महावीर का जन्म हुआ, वह रात्रि, प्रभु के जन्म महोत्सव हेतु नीचे उतरते हुए और ऊपर चढते हुए विपुल देवों और देवियों से मानो अतिशय आकुल न बनी हो ? तथा आनन्द से फैलते हुए हास्यादि अव्यक्त शब्दो से मानो कोलाहलमय बन गयी न हो ! ऐसी हो गई।
९५) जिस रात्रि में श्रमण भगवान महावीर का जन्म हुआ, उस रात्रि में कुबेर की आज्ञा मानने वाले अनेक तिर्यक्जृंभक देवों ने सिद्धार्थ राजा के महल में चांदी की, सुवर्ण की, रत्नों की, देवदूष्य वस्त्रों की, गहनों की, नागरवेल 'प्रमुख' पत्रों की, पुष्पों की, फलों की, कपुर-चन्दादि सुगन्धित चूर्णो की, हिंगलोक प्रमुख विविध वर्णो की वृष्टि और द्रव्य की धाराबद्ध वृष्टि बरसायी ।
९६) उसके पश्चात् वह सिद्धार्थ क्षत्रिय भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों ने तीर्थंकर
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