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मालाएँ एवं अलंकारो को उतारकर स्वंय पंचमष्टि लोच करते है, लोच करके निर्जल छट्ट याने दो दिन के 3 उपवास करके चित्रा नक्षत का योग आने पर देव दूष्य वस्त्र ग्रहण कर, दूसरे हजारों पुरूषो के साथ मुंड होकर
गहवास से निकल कर अनगारपनेको स्वीकार किया । . १६५) अर्हन् श्री अरिष्टनेमि ने चोपन दिन ध्यान में रहकर हमेशा काया की शुश्रुषा का लक्ष्य छोड दिया था ॐ तथा शारीरिक वासनाओं का भी त्याग कर दिया । इत्यादि सब जैसा पूर्व वर्णन किया वैसा जानना । अर्हन्
श्री अरिष्टनेमि ने इस प्रकार के ध्यान में रहते हुए पचपन रात दिन बीताये । वे जब इस प्रकार पंचपनवे रात 3 दिन के मध्य थे तब उस वर्षा ऋतु का तीसरा महीना, पांचवा पक्ष याने आश्विन कृष्ण अमावस्या के दिन के 卐 पिछले भाग में उज्जयंतगिरि याने गिरनारपर्वत पर वेलस वृक्ष नीचे चौविहार अट्ठम तप युक्त टीक उस समय * चित्रा नक्षत्र का योग आने पर उन्होंने अनन्त वस्तु विषयक केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त किया । अब वे
समस्त द्रव्य और उनके तमाम पर्यायों को देखते विचरण करते है।
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