Book Title: Barsasutra
Author(s): Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publisher: Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai

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Page 196
________________ ड (२३२) चातुर्मास रहे हुए साधु-साध्वियों को चारों दिशा और विदिशाओं में एक योजन और कोस तक अर्थात् पांच कोस म तक का अवग्रह कल्पता है । उससें जितने समय में भीना हुआ हाथ सूख जाय उतना समय अवग्रह में रहना कल्पता है, परन्तु अवग्रह से बाहर रहना नहीं कल्पता है । (२३३) वर्षा काल में रहे हुए साधु-साध्वियों को चारों ओर पांच कोस तक भिक्षाचर्या जाना आना कल्पता है। जहाँ पर नित्य ही अधिक जल वाली नदी हो और नित्य बहती हो वहाँ सर्व दिशाओं में एक योजन और एक कोस तक भिक्षाचर्या के लिये जाना आना नहीं कल्पता है । कुणाला नामा नगरी के पास ऐरावती नामा नदी हमेशा दो कोश प्रमाण बहती है। वहाँ एक पैर जल में रखे और दूसरा पानी * से ऊपर रखकर चले । यदि इस प्रकार नदी उतर सकता हो तो चारों दिशाओं और विदिशा में एक योजन एक कोश तक भिक्षा निमित्ते जाना आना कल्पता है ।। (२३४) चातुर्मास में रहे हुए साधु को पहले से ही गुरू ने कहा हुआ हो कि हे शिष्य ! बीमार साधु को अमुक वस्तु ला देना तब उस साधु को वस्तु ला देनी कल्पती है किन्तु उस वस्तु को स्वंय काम में लेना नहीं कल्पता है। TO卐0000000000 190 www

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