Book Title: Barsasutra
Author(s): Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publisher: Dipak Jyoti Jain Sangh Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 198
________________ 40 500 40 500 40 150040/ को अपनी आवश्यकतानुसार प्रमाण बतलाने पर उस सेवा करने वाले मुनि को गुरू के पास आकर कहना चाहिये कि बीमार को इतनी वस्तु की आवश्यकता हैं । गुरू कहे जितना प्रमाण वह बीमार बतलाता है, उतने प्रमाण में वह विगइ तुम ले आना। फिर सेवा करने वाला वह मुनि गृहस्थ के पास में जाकर मांगे । मिलने पर सेवा करने वाला मुनि जब उतने प्रमाण में वस्तु मिल गई हो जितनी बीमार को आवश्यकता है, तब कहे कि बस करो । गृहस्थ कहे- 'भगवन्' बस करो ऐसा क्यों कहते हो ? तब मुनि कहे- 'बीमार' को इतनी ही आवश्यकता हैं, इस प्रकार कहते हुए साधु के कदाचित् गृहस्थ कहे कि हे आर्य साध ! आप ग्रहण कीजिये, बीमार के भोजन करने के बाद जो बचे सो आप खा लेना, दूध आदि पी लेना, ऐसा गृहस्थ के कहने पर अधिक लेना कल्पता है । परन्तु बीमार के निश्राय से, लोलुपता से अपने लिये लेना नहीं कल्पता है। (२३९) चातुर्मास में रहे हुए साधुओं को उस प्रकार के अनिन्दनीय घर जो कि उन्होंने या दूसरो ने श्रावक किये हो, प्रत्ययवन्त या प्रीति पैदा करने वाले हों या दान देने में स्थिरता वाले हों या मुझे निश्चय ही मिलेगा ऐसे निश्चय वाले हों, जहाँ सर्वमुनियों का प्रवेश सम्मत हो, जिन्हें बहुत साधु समत हों, या जहाँ घर के बहुत से मनुष्यों को साधु सम्मत हों तथा जहाँ दान देने की आज्ञा दी हुई हो, या सब साधु समान है ऐसा समझकर जहाँ छोटा शिष्य भी इष्ट हो, परन्तु मुख देखकर तिलक 192 140501405014050040

Loading...

Page Navigation
1 ... 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224