________________
अन्यों के शरीर की अपेक्षा अधिक मजबूत बांधावाला था। विदेह दिन्न याने विदेह दिन्ना-त्रिशला माता के तनय याने पुत्र थे। विदेह जन्य याने त्रिशला माता के शरीर से जन्मे हुए थे, विदेह सुकोमल याने गृहस्थावथा में अत्यहि कि कोमल थे और तीस वर्ष गृहस्थावास करके अपने माता-पिता के दिवंगत याने स्वर्गवासी होने पर अपने बड़ों की अनुज्ञा प्राप्तकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी होने पर, फिर भी लोकांतिक-जीत कल्पी देवो ने उस प्रकार की इष्ट, मनोहर, श्रवण प्रिय, मन-पसंद, मनोरंजनकारी, उदार, कल्याणस्वरुप, शिवरुप, धन्यरुप, मंगलरुप, परिमित, मधुर, शोभायुक्त, और हृदयंगम, हृदय को खुश करने वाली, गंभीर और पुनरुक्ति दोष बिना की वाणी से भगवान को निरंतर अभिनंदित किया और उन भगवान की खूब स्तुति की, इस प्रकार अभिनन्दन करते और उन भगवान की खूब स्तुति करते वे देव इस प्रकार से बोले:"हे नंद! आपका जय हो, जय हो, हे भद्र! आपकी जीत हो, आपका कल्याण हो, हे उत्तमोत्तम क्षत्रिय- हे क्षत्रिय नरपुंगव! आपका जय हो, विजय हो, हे भगवंत लोकनाथ! आप बोध प्राप्त करो, संपूर्ण जगत में सभी जीवों के हित,
00-00卐000卐u0930