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भगवान महावीर, निर्जल छट्ट तप से युक्त, स्वाति नक्षत्र का चन्द्र का योग होने पर, प्रभातकाल रूप अवसर में यानी चार घड़ी रात्रि शेष रहने पर, सम्यक् प्रकार से पर्यकासन में यानी पद्मासन में बैठे हुए, श्री महावीर पुण्य के फल विपाक वाले पंचावन अध्ययन, पाप के फल विपाकवाले पंचावन अध्ययन और बिना के पूछे छत्तीस उत्तर बताकर, प्रधान नाम के मरुदेवी के एक अध्ययन का ध्यान धरते हुए, कालधर्म पाये, संसार समुद्र से पार उतरे, संसार में पुनः न लौटना पड़े ऐसे सम्यक् प्रकार से ऊर्ध्व प्रदेश में गये। और प्रभु कैसे थे ? जरा व मृत्यु के कारण भूत कर्मों को छेदने वाले, तत्व-अर्थ को जानने वाले, भवोपग्राही कर्मों से मुक्त, सर्व दुःखो का अन्त करने वाले, सर्व प्रकार के संताप से रहित, और शरीर व मन सम्बंधी दुःखो को नष्ट करने वाले बने।
१४७) आज श्रमण भगवान महावीर के निर्वाण हुए नौ सो वर्ष बीत गये और दसवे सैके का यह अस्सीवॉ संवत्सर चल रहा है याने भगवान महावीर को निर्वाण हुए ९८० वर्ष हो गये। दूसरी वाचना के अनुसार कितनेक कहते है कि नौ सौ वर्ष उपरांत दसवे सैके का यह त्रयान्हवा संवत्सर काल चल रहा है। अर्थात् उनके मतानुसार महावीर निर्वाण समय ९९३ वर्ष हो गये है। तब से कल्पसूत्र सभा समक्ष वांचना प्रारंभ हुआ।
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