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१५५) इसके बाद वे पार्श्वनाथ प्रभु अणगार हुए यावत् इर्यासमिति वाले बने और उस प्रकार से आत्मा को भावित करते-करते त्यासी रात-दिन बीत गये और चौरासीवा दिन चल रहा था । तब ग्रीष्म ऋतु का प्रथम महीना, प्रथम पक्ष चैत्र मास की कृष्ण
चतुर्थी के दिन चढ़ते पहोर धावडी वृक्ष के नीचे वे पार्श्व अणगार निर्जल छ? भक्त किया था, उस समय में ध्यान में लगे हुए थे 卐 तब विशाखा नक्षत्र का योग आने पर उनकों अंनत उत्तमोत्तम ऐसा केवल ज्ञान केवल दर्शन उत्पन्न हुआ।
१५६) पुरुषादानीय अर्हन् पार्श्वप्रभु आठ गण और आठ गणधर थे, उनके नाम इस प्रकार से है :- १. शुभ, २. आर्यघोष, ३. वसिष्ठ, ४. ब्रह्मचारी, ५. सोम, ६. श्रीधर, ७. वीरभद्र और ८. जस।
१५७) पुरुषों में उत्तम पार्श्वप्रभु के समुदाय में आर्यदिन्नादि सोलह हजार साधुओं की, पुष्पचूलादि अड़तीस हजार आर्याओं की याने साध्वीजी की, सुंनद विगेरे एक लाख चौसठ हजार श्रावकों की, सुनंदा विगेरे तीन लाख सत्ताविश
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