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5 याने साधुपने को प्राप्त किया याने प्रव्रज्या स्वीकार की।
११५) श्रमण भगवान महावीर एक वर्ष से अधिक एक मास तक चीवरधारी याने कपडा धारण करने वाले हए और उसके बाद अचेल याने कपडे रहित तथा करपात्री हुए।
___११६) श्रमण भगवान महावीर दीक्षा स्वीकार करने के पश्चात् बारह वर्ष से अधिक समय तक साधना समय में त शरीर की ओर उदासीन याने इस समय में शरीर की ओर थोड़ा भी ध्यान नहीं दिया मानो कि शरीर का साथ बिल्कुल
छोड दिया हो वैसे रहे। साधना समय में जो जो उपसर्ग आ रहे थे जैसे कि, देव मानव व तिर्यचों की और से याने क्रूर, भयानक पशु-पक्षिओं की ओर से आने वाले उपसर्ग, अनुकुल व प्रतिकुल उपसर्ग जो जो भी जैसे तैसे उपसर्ग
आये उन्हें धैर्य और निडरता से सहन करते है, थोडा भी रोष लाये बिना तेजस्विता से मन को निश्चल बनाकर सहन ॐ करते है।
११७) उसके बाद श्रमण भगवान महावीर अनगार याने साधु बने, इर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदानभंडमत्त निक्षेपणा समिति और पारिष्ठापनिका समिति याने अपने मल-मूत्र थूक,श्लेश्म और अन्य शारीरिक मल
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