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१२९) जबसे वह भस्मराशि नामका महाग्रह भगवान महावीर के जन्म नक्षत्र पर आया था तबसे श्रमण निग्रन्थों और निग्रन्थिओं का आदर-सत्कार दिनो दिन घटने लगा।
१३०) जब वह भस्मराशी ग्रह भगवान के जन्म नक्षत्र से दूर हो जायगा तब पुनः श्रमण निग्रन्थों और निग्रन्थियों का पूजा-सन्मान-सत्कार बढने लगेगा।
१३१) जिस रात्रि में श्रमण भगवान महावीर मोक्ष गये उस रात से जिनकी रक्षा न कर सके ऐसे अतिसूक्ष्म 'कुंथुए' नामक जीव पैदा हुए। वे कुंथुए इतने सूक्ष्म थे कि जो स्थिर थे याने चलते फिरते न थे, वे छद्मस्थ ऐसे निग्रन्थों की तथा निग्रंथियों की दृष्टि -पथ में जल्दी नहीं आते थे, किंतु जो कुंथुए अस्थिर थे, चलते-फिरते थे, वे ही छद्मस्थ ऐसे निग्रन्थ व निग्रन्थियों की दृष्टि पथ में जल्दी आते थे। ऐसे जन्तुओं को देखकर बहुत से निग्रन्थो व निग्रन्थिओ ने अनशन स्वीकार लिया।
१३२) यहां पर शिष्य गुरु भगवंत को प्रश्न पूछता है कि- "हे भगवान ! यह आप क्या फरमाते है? अर्थात् उस समय कई साधु-साध्विओ ने अनशन किया इसका क्या कारण है ? गुरु महाराजने उत्तर दिया कि- “आज से लगाकर संयम दुराराध्य होगा यानी संयम का पालन करना कठिन होगा, क्योंकि पृथ्वी जीव जंतु से व्याप्त होगी, संयम के योग्य क्षेत्र
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