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3 १२२) उस काल और उस समय में भगवान महावीर ने अस्थिक गांव में प्रथम चौमासा किया। चंपा नगरी में
और पष्ठचंपा में तीन चौमासे किये। वैशाली नगरी में और वाणिज्य गांव में बारहबार, राजगह नगर में और उसके बाहर के नालंदा मुहल्ले में चौदह बार, मिथिला नगरी में छ बार, भद्दिला में दो बार, आलंभिका में एक 3 बार, श्रावस्ती में एकबार, प्रणीत भूमी में याने वजभूमि नामक अनार्य देश में एकबार, अन्तिम चौमासा मध्यम 卐 पावापूरी नगरी में हस्तिपाल राजा के लिपीक कार्यालय स्थान में किया।
है १२३) जब भगवान अन्तिम चौमासा करने हेतु मध्यम पावापुरी नगरी में आये तब उस वर्षा ऋतु का चौथा म महीना और सातवां पक्ष चल रहा था, सातवाँ पक्ष याने कार्तिक महीने का कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि थी
और वह भगवान की अन्तिम रात्रि थी। उस रात श्रमण भगवान महावीर मोक्ष पाये-संसार छोड़कर चले गये, पुनः जन्म न लेना पडे ऐसा अन्तिम मरण पा गये। उनके जन्म, बुढापा और मृत्यु के सभी बंधन नष्ट हो गये।
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