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उस भगवन्त को कही भी प्रतिबंध न था याने भगवान के मन को अब किसी प्रकार का बंधन न रहा था। बंट ा चार प्रकार के होते है:- १-द्रव्य से, २-क्षेत्र से, ३-काल से और ४-भाव से। १. द्रव्य से याने सजीव, निर्जीव और मिश्र याने निर्जीव सजीव ऐसे किसी प्रकार के पदार्थो में भगवान को
बांधने का सामर्थ्य नहीं था। २. क्षेत्र से याने गांव में, नगर में, जंगल में, क्षेत्र में, घर में, प्रांगण या आकाश में ऐसे किसी स्थान का बंधन नहीं था।
३. काल से याने समय, आवलिका, श्वासोच्छवास, स्तोक, क्षण, लव, मुहूर्त, अहोरात, पक्ष, मास, ऋतु, * अयन, वर्ष या दूसरा कोई लम्बे समय का संयोग, ऐसे किसी प्रकार के सूक्ष्म, स्थूल या छोटे-बड़े काल ॐका बंधन नहीं रहा।
४. भाव से याने कोध, अभिमान, छलकपट, लोभ, भय, हंसी-मजाक, राग-द्वेष, झगडा, दोषारोपण,
चूगलीकरना, पर निंदा, राग-उद्वेग-कपटवृत्ति सह झूठ बोलना और मिथ्यात्व भावो में याने उपर्युक्त 105
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