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ऐसी किसी भी वृत्तियो में भगवान को बंधन नहीं था अर्थात् ऊपर बताये हुए चारों प्रकार के प्रतिबंधो में से कोई भी प्रतिबंध भगवान को बांध नहीं सकता था।
११९) श्रमण भगवान महावीर चातुर्मास को छोड़कर, शीतकाल और ग्रीष्मकाल में आठ मास तक विचरते रहते थे। गांव में एक रात्रि ही रहते थे और शहर में पांच रात से अधिक नहीं ठहरते थे, बांस और चंदन के स्पर्श में समान विचार वाले, घास और रत्न या मिट्टि या सोने में समानवृत्ति वाले, रूप से सहन करने वाले इस लोक और परलोक में प्रतिबंध बिना के, जन्म-मृत्यु की आकांक्षा बिना के, संसार का अन्त पानेवाले, कर्मसत्ता को अशेषतया दूर करने में तत्पर ऐसे भगवान विचरण करते है।
सुख-दुःख को समान
१२०) ऐसे विचरते हुए भगवान अनुपम उत्तम ज्ञान, दर्शन, चारित्र, अनुपम याने निर्दोष वसति विहार, वीर्य सरलता, नम्रता अपरिग्रह भाव, क्षमा, अलोभ, गुप्ति, प्रसन्नतादि गुणों से और सत्य संयम तपादि जिन-जिन गुणों के ठीक-ठीक आचरण से निर्वाण का मार्ग याने सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चारित्र से,
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