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________________ 240 1500 40 500 40 500 40 ऐसी किसी भी वृत्तियो में भगवान को बंधन नहीं था अर्थात् ऊपर बताये हुए चारों प्रकार के प्रतिबंधो में से कोई भी प्रतिबंध भगवान को बांध नहीं सकता था। ११९) श्रमण भगवान महावीर चातुर्मास को छोड़कर, शीतकाल और ग्रीष्मकाल में आठ मास तक विचरते रहते थे। गांव में एक रात्रि ही रहते थे और शहर में पांच रात से अधिक नहीं ठहरते थे, बांस और चंदन के स्पर्श में समान विचार वाले, घास और रत्न या मिट्टि या सोने में समानवृत्ति वाले, रूप से सहन करने वाले इस लोक और परलोक में प्रतिबंध बिना के, जन्म-मृत्यु की आकांक्षा बिना के, संसार का अन्त पानेवाले, कर्मसत्ता को अशेषतया दूर करने में तत्पर ऐसे भगवान विचरण करते है। सुख-दुःख को समान १२०) ऐसे विचरते हुए भगवान अनुपम उत्तम ज्ञान, दर्शन, चारित्र, अनुपम याने निर्दोष वसति विहार, वीर्य सरलता, नम्रता अपरिग्रह भाव, क्षमा, अलोभ, गुप्ति, प्रसन्नतादि गुणों से और सत्य संयम तपादि जिन-जिन गुणों के ठीक-ठीक आचरण से निर्वाण का मार्ग याने सम्यग् दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चारित्र से, 106 40501405004050040
SR No.600025
Book TitleBarsasutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
PublisherDipak Jyoti Jain Sangh Mumbai
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size26 MB
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