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में बैठे। उनके पिछे पिछे देव, दानव व मनुष्यों के बड़े बड़े समुह रास्ते में चल रहे थे। आगे-आगे कितनेक शंख बजाने वाले, कितनेक चक्रधारी, कितनेक हलधारी थे। विशेष भाट जाति के लोकोने कंठ में सोने का हल लटकाया हुआ था। कितने लोगो ने अपने कंधे पर अन्य लोगों को बिठाया हुआ था, कितने चारण, कितनेक घंट बजाने वाले थे। इस प्रकार की मानव मेदनी से परिवेष्टित भगवान को पालखी में बैठे हुए देखकर, कुल के वृद्ध जन विगेरे स्वजन उस प्रकार की यावत् इष्टादि विशेषणों वाली, वह वाणी कैसी है तो कहते है सुमधुर, कर्णप्रिय, कल्याणकारी, अर्थ में गंभीर, सरल, उदार, शोभायुक्त वाणी से भगवान का अभिनंदन करते हुए, भगवान की स्तुति करते इस प्रकार से कहने लगे:
११२) “हे नंद। आप जय पाओ, जय पाओ, हे समृद्धिमान! आप जय पाओ, जय पाओ! आपका कल्याण हो! आप जीती न जा सके याने वश में न हो सके ऐसी इन्द्रियों को अभग्न याने अतिचार रहित ऐसे ज्ञान, दर्शन और चारित्र के द्वारा वश करो। तथा जीते हुए याने वश किये हुए क्षांति विगेरे दस प्रकार के श्रमण धर्म का आप पालन करो। आप अपनी ध्येय की सफलता में हमेशा द्दढ रहे, तप से राग-द्वेश नामक मल्लों का विनाश करो। धैर्यता में अति कम्मर कसकर - अत्यन्त द्दढ
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