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मृदंग और दुंदुभि नामक देववाद्य
इन सभी वाजिंत्रो की जो गंभीर आवाज व उनकी गूंज रुपी प्रतिध्वनि से युक्त दस दिन पर्यन्त अपनी कुल मर्यादानुसार महोत्सव करते है। इस उत्सव में शहर में कर लेना बंध किया, जिसको जो चाहिए वह बिना किमत दिये किसी भी दुकान से सामान ले सकता है ऐसी व्यवस्था करने में आई । क्रय-विकय बंध किया। राजा सभी लोगों का ऋण अदा कर देगा अतः किसी को भी ऋण लेने की आवश्यक्ता नहीं रहे ऐसी व्यवस्था करने में आई। इस उत्सव में अपरिमित पदार्थ इकट्टे किये गये है, ऐसा सर्वोत्कृष्ट उत्सव मनाने में आया। इस उत्सव तक किसी पर थोडा भी दण्ड़ नहीं किया जाता है। तथा जहां तहां उत्तम गणिकाएं व नृत्यकारों द्वारा नृत्य करने में आ रहा है इसके अलावा इधर-उधर विभिन्न खेलों का आयोजन करने में आया है और निरंतर मृदंग आदि बजाये जा रहे हैं। जब तक उत्सव चल रहा है, मालाएं विगेरे म्लान न हो जाए इसका पूरा ध्यान रक्खा जा रहा है। इसी प्रकार नगर और देश के सभी मनुष्यों को प्रभुदित - प्रसन्न करने में आये है। सभी दश दिन तक आमोद-प्रमोद में मस्त बने रहे ऐसी व्यवस्था की गई है।,
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