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१००) अब वह सिद्धार्थ राजा दश दिन का उत्सव चल रहा था उसमें सेंकड़ो, हजारो, लाखो देवपूजादि कार्य व दानादि कार्य स्वयं करता दूसरों से भी कराता था। तथा सेकडों, हजारों लाखों लोगों से वधामणी स्वीकार
करते हैं। 3 १०१) उसके बाद श्रमण भगवान महावीर के माता-पिता प्रथम दिन कुल परंपरानुसार पुत्र जन्म निमित्त 卐 किया जाने वाला अनुष्ठान करते है, तीसरे दिन चन्द्र-सूर्य के दर्शन का खास उत्सव करते है, छठे दिन रात्रि २ जागरण करते है, इसी प्रकार प्रत्येक प्रकार की कुल मर्यादा पूरी करते हुए ग्यारवां दिन व्यतिक्रान्त होन पर * नालोच्छेदन विगेरे अशुचि ऐसी जन्म क्रियाएं समाप्त होने पर पुत्र जन्म के बारहवें दिन प्रभु के माता-पिता तब ॐ उदारता पूर्वक भोजन, पेयपदार्थ, स्वादिष्ट खाद्य सामग्री तैयार कराते है। तत्पश्चात् अपने मित्रजन, ज्ञातिजन,
स्वकीय मनुष्यों, स्वजन याने पितराई, पुत्री-पुत्रादि के सास-श्वसुर विगेरे सम्बन्धीजन, दास, दासी, नोकर, चाकर तथा ज्ञात कुल के क्षत्रियों को भोजन हेतु आमंत्रण देते है। आमन्त्रण देकर बाद में प्रभु के जनक-जननी
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