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ड ९८) उसके पश्चात् सिद्धार्थ राजा ने जिनको आज्ञा दी है ऐसे कोतवालादि खुश-खुश हो गये, संतुष्ट हुए,
खुशी के मारे उनका हृदय प्रफुल्लित बना। उन्होंने अपने दोनों हाथ जोड़कर सिद्धार्थ राजा की आज्ञा को विनय पूर्वक स्वीकार कर शीघ्र ही कुण्डनपुर नगर में सर्व प्रथम जेल की सफाई का कार्य किया और इसके पश्चात्
अन्तिम सांबेला ऊंचे रक्खने तक के सारे कार्यों जो सिद्धार्थ राजा ने बताये थे संपन्नकर राजा के पास जाकर के विनय पूर्वक हाथ जोड, शिर झुकाकर उनकी आज्ञा वापस लौटाते है। याने जैसी आपकी आज्ञा थी वैसा सारा 13 कार्य पूरा कर दिया है। ऐसी जानकारी देते है।
है ९९) उसके बाद में सिद्धार्थ राजा जहां कसरत शाला है वहां आते है। आकर यावत् अपने तमाम अन्तःपुर 卐सह अनेक प्रकार के पुष्प, गन्ध, वस्त्र व अलंकारों से अलंकृत होकर, सभी प्रकार के वार्जीत्र बजवाकर, बड़े Q वैभव के साथ, कान्ति युक्त होकर, बडे सैन्य, बहुत से वाहनो के साथ, बड़े समुदाय के साथ तथा एक साथ में बजते अनेक वाजिंत्रो की आवाज के साथ याने शंख, ढोल, नोबत, खंजरी, रणशीणा, हड्क नामक वाजिंत्र,
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