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स्नान करते हैं, इष्टदेवों की पूजादि करते है, विघ्न विनाश हेतु तिलक आदि कौतुक तथा दही, धो अक्षतादि मंगलरूप प्रायश्चित करते है। उत्सव के अनुरुप स्वच्छ पोषाक धारण करते है तथा भोजन समय प्राप्त होने पर वे सब भोजन मण्डप में आकर उत्तम आसन पर सुख पूर्वक बैठे और भोजन हेतु आमंत्रण देकर बुलवाए उन मित्रों, ज्ञाती के मनुष्यों, पुत्र-पुत्रादि स्वकीय मनुष्यों, पित्राइ विगेरे स्वजनों, पुत्र-पुत्रादि के सास- श्वसुरों आदि संबंधियों के साथ उन तैयार करवाये हुए विपुल रसवंतियों का स्वयं स्वाद लेते हुए और दूसरों को आग्रह पूर्वक एक दूसरे को रखते हुए अर्थात् भगवान के माता-पिता अपने पुत्र जन्म महोत्सव में ज्ञातिजनों के साथ भोजन का आनन्द ले रहे है।
१०२) भोजन से निवृत्त होकर उन सबके साथ भगवान के माता-पिता बैठक के स्थान पर आकर शुद्ध जल 2 से आचमन किया, दांत मुह को स्वच्छ किया, इस प्रकार परम पवित्र होकर, वहां आये हुए मित्र, ज्ञातिजन, स्वजन तथा सगे सम्बन्धी परिवारों को भगवान के माता-पिता ने पुष्पों, वस्त्रों, सुगन्धित अत्तरों, मालाओं और
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