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रत्नों की रचना से आश्चर्यकारी ऐसे सिंहासन से उठकर मन की त्वरारहित, शरीर की चपलता रहित, स्खलना रहित, और बिचमें किसी प्रकार के विलंब रहित, ऐसी राजहंस सद्दश गति से जहां अपना भुवन है वहां आती है, वहां आकर अपने कमरे में प्रवेश करती है।
८४) जब से लगाकर श्रमण भगवान् महावीर उस राजकुल में हरिणैगमेषी देव द्वारा संहरित हुए तब से लगाकर कुबेर की आज्ञा को धारण करने वाले ऐसे बहुत से तिर्यगजुंभक देव यानी तिर्छालोक में निवास करने वाले जूभक जाति के देव, शक्रेन्द्र की आज्ञा से यानी की शक्रेन्द्र ने कुबेर को आज्ञा दी और कुबेर ने तिर्यगजुंभक देवों को आज्ञा दी। इस प्रकार कुबेर द्वारा शक्रेन्द्र की आज्ञा से तिर्यग् जुंभकदेव, जो अब से पूर्व में गाढ़े हुए पुरातन काल के महानिधान थे। उन महानिधानों को लाकर सिद्धार्थ राजा के भवन में रखते है। किस तरह से महानिधानो को लाकर तिर्यगजुंभक देव सिद्धार्थ राजा के भवन में रखते है? वे बताते हैं जिनके मालिक सब प्रकार से नष्ट हो गये हैं, जिन भण्डारो की वृद्धि करने वाला भी कोई अवशेष नहीं है, जिन पुरुषों ने निधान जमीन में दबाये हैं उनके गोत्रीय पुरुष तथा धर भी विरान हो गये है, जिनके स्वामी सर्वथा विनाश को प्राप्त हुए हैं- संतान रहित मृत्यु को प्राप्त हुए हैं ऐसे 67 *
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