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- नाटककार नाटक करते थे, चारों ओर वाह! वाह! हो रही थी, वहां अब सूनसान हो गया है, और पूरा घर उदास का मग्न हो रहा है।
८९) इसके बाद श्रमण भगवान महावीर माता के मन में उत्पन्न इस प्रकार के विचार-चिंतवन-अभिलाषा रुप मनोगत संकल्प जानकर स्वयं अपने शरीर का एकभाग कम्पित करते है।
९०) तत्पश्चात् वह त्रिशला क्षत्रियाणी प्रसन्न-प्रसन्न हो गई, संतुष्ट हई और प्रसन्नता के कारण उसका मन मयूर नृत्य करने लगा तथा खुश होकर इस प्रकार कहने लगी कि “वास्तव में मेरा गर्भ किसी भी दुष्ट देवादिक से अपहरण नहीं किया गया, द्रवीभुत होकर गिर भी नहीं गया, मेरा गर्भ पहले हिलता-डुलता नहीं था परन्तु अब हलन-चलन करने लगा है। ऐसा कहकर वह त्रिशला क्षत्रियाणी हर्षित बनी हुई संतुष्ट बनी हुई यावत आनन्दातिरेक से प्रफुल्लित हृदयवाली बनती है।
९१) इसके बाद श्रमण भगवान महावीर गर्भ में रहे हुए ही इस प्रकार का अभिग्रह याने नियम स्वीकार करते है कि जब तक माता-पिता जीवित रहेंगे तब तक मैं गहवास छोडकर दिक्षा ग्रहण नहीं करूंगा।