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निधान, कई गायों में, खानों में, कई शहरों में मिट्टी के विलीन हुए गढ़वाले ग्रामों में, कई शहर की तुलना में शोभा ॐ न पा सके ऐसे गांवों में, कई जिनकी आस-पास चारों तरफ दो-दो कोस में ही गांव हो ऐसे गांवो से, कई जहां
जलमार्ग है और स्थलमार्ग भी है वहां से, गांव और नगर की नालियों से, दुकानों में, यक्ष विगेरे देवों के मंदिरों में, मनुष्यों को बैठने के स्थान में अथवा जहां मुसाफिर आकर रसोई पकाता है उन स्थानो में, पानी की प्याऊ में, आश्रमों में याने तीर्थ स्थान या तापस मठो में, कई त्रिकोणात्मक या चतुष्कोणात्मक मार्ग में, बड़े बड़े आम मार्ग में, बाग-बगीचा की भूमि में, श्मशानो में, निर्जन मकानो में, पर्वत की गुफाओं में, शान्ति कर्म न कर सके ऐसे स्थानों में, सभागृहों में शैल गृहो में- इस प्रकार विभिन्न स्थानो में जहां कृपण मनुष्यों द्वारा पहले जो निधान गाढ़े हुए है, उन महानिधानो को लेकर शक्रेन्द्र की आज्ञा से तिर्यग्नुंभक देव सिद्धार्थ राजा के महल में लाकर रखते है।
८५) जिस रात्रि में भगवान महावीर को ज्ञात कुल में संहरण किया, उस रात्रि से लगाकर संपूर्ण ज्ञात कुल चांदी से बिना घड़े हुए सुवर्ण से बढने लगा, धन धान्य से, राज्यश्री से, राष्ट्र से, सेना से, वाहन से, भण्डारो से, कोठारों से, नगरों से अन्तः पुरों से, देशवासी लोगों से, यशःकीर्ति से वृद्धिपाने लगा। इतना ही नहीं किन्तु विस्तीर्ण धन यानी
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