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७९) उसके बाद सिद्धार्थ क्षत्रिय अपने सिंहासन से उठता है। उठकर जहां त्रिशला क्षत्रियाणी पर्दे में बैठी हुई है वहां आता है, वहां आकर त्रिशला क्षत्रियाणी को इस प्रकार कहता है:
८०) “हे देवानुप्रिये! स्वप्न शास्त्र में बीयालीस प्रकार के स्वप्न कहे गये है, वहां से लगाकर मांडलिक राजा; गर्भ में आता है तब उनकी माता; तीस महास्वप्नों में से लेकर कोई एक महास्वन देखकर जगती है, वहां तक की संपूर्ण जानकारी जो स्वप्न पाठकों ने कहीं हुई थी वह सब त्रिशला क्षत्रियाणी को कह सुनाते है।
८१) “हे देवानुप्रिये! तुमने तो ये चौदह महास्वप्न देखे हैं, अतः ये सब अति महान् है, इस कारण तुम तीन लोक के नायक, धर्मचक को प्रवर्ताने वाले तथा 'जिन' बनने वाले पुत्र को जन्म देने बाली हो'। वहां तक की संपूर्ण जानकारी त्रिशला क्षत्रियाणी को कह देते है।
र बनने वाले पुत्र को जन्म है
८२) उसके बाद वह त्रिशला क्षत्रियाणी सिद्धार्थ राजा से यह सारी बात सुन-समझकर अति प्रसन्न हुई, संतुष्ट हुई और अत्यन्त खुशी के कारण उसका मन-मयूर नाचने लगा तथा स्पन्दित होने लगा। तत्पश्चात् अपने दोनों हाथ जोडकर यावत् स्वप्नार्थ को अच्छी तरह से स्वीकृत करती है।
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