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हे देवानुप्रिय ! ये स्वप्न आरोग्यदायक, तुष्टी करने वाले, दीर्घ आयुष्य का सूचक, कल्याण और मंगल कर्ता ऐसे स्वप्न त्रिशला क्षत्रियाणी ने देखे है।
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७७) उसके बाद वह सिद्धार्थ राजा स्वप्न लक्षण पाठकों से स्वप्न सम्बन्धी विवरण सुन-समझकर खुश-खुश हो गया, खूब संतुष्ट हुआ और हर्ष के कारण उसका हृदय स्पन्दन करने लगा। उसने अपने दोनों हाथ जोडकर स्वज पाठकों को इस प्रकार से कहा:
७८) " हे देवानुप्रियो ! यह ऐसा ही है। हे देवानुप्रियों! आपने स्वप्नों का जो फल बताया है वह ऐसा ही है। हे देवानुप्रियो ! यह यथास्थित है। हे देवानुप्रियों! यह इष्ट है यानी मेरे द्वारा इच्छित है, आपके द्वारा कथित मैने स्वीकार किया । हमने इसको अच्छी तरह से मान्य किया है। हे देवानुप्रियो ! तुम्हारे द्वारा कही हुई बात सत्य ही है। इस प्रकार से कहकर विनय पूर्वक उन के विवरण को अच्छी तरह से स्वीकार करते है। ऐसा कर उन स्वप्न पाठकों का उसने बहुत आदर सत्कार किया याने जीवन पर्यंत निर्वाह चल सके ऐसा बहुत प्रीतिदान दिया। उसके पश्चात् स्वप्न पाठकों को विनय पूर्वक लौटाते है याने विदाय करते है।
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