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करते हैं। तत्पश्चात् सर्व सम्मत एक जन को अग्रसर करके, अगुआ जो कहे उस अनुसार बोलने हेतु निर्णय लेते हैं। जहां बाह्य सभागार में सिद्धार्थ क्षत्रिय है, वहां आते है। आकर अपने दानों हाथ जोड, अंजलि कर सिद्धार्थ क्षत्रिय
का "जय हो, विजय हो' ऐसा बोलकर बधाते है। ★ ६८) उसके बाद सिद्धार्थ राजाने उन स्वप्न पाठकों को नमन किया, आदर सत्कार-सम्मान किया। उसके बाद उनके लिए रक्खे हुए सिंहासन पर बैठ जाते है।
६९) तत्पश्चात् सिद्धार्थ क्षत्रिय त्रिशला क्षत्रियाणी को पर्दे में उचित स्थान में बिठाते है। बिठाकर हाथ में फूल-फलादि लेकर विशेष प्रकार के विनय से स्वप्न पाठकों को सिद्धार्थ क्षत्रिय इस प्रकार से कहने लगे- 'हे देवानुप्रयो! वास्तव 5 में ऐसा है कि आज त्रिशला क्षत्रियाणी उस प्रकार की उत्तम शय्या में अर्धजाग्रत अवस्था में थी उस समय इस प्रकार ॐके उदार और महान चौदह स्वप्नों को देखकर जग गई।
वे स्वप्न इस प्रकार से थे। उन चौदह स्वप्नों के नाम इस प्रकार से है:- 1: गज(हाथी), 2: वृषभ(बैल), 3: सिंह, 4: अभिषेक- लक्ष्मी देवी का अभीषेक, 5: माला- पुष्पमाला युगल, 6: चन्द्र, 7: सूर्य, 8: ध्वज, 9: कुंभ, 10: पह्मसरोवर
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