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६४) ऐसा सिहांसन रखवाकर सिद्धार्थ क्षत्रिय कौटुंबिक पुरुषों को बुलाता है। कौटुम्बिक पुरुषों को इस प्रकार से कहा- हे देवानुप्रियो! तुम शीघ्र जाओ और जो आठ है अंग जिसमें ऐसा जो महान् निमित्तशास्त्र याने परोक्ष पदार्थों 2 को बताने वाला शास्त्र उस निमित्त शास्त्रों के सूत्र व अर्थ में पारंगत बने हुए एवं विविध जाति के शास्त्रों में कुशल ऐसे स्वप्न लक्षण पाठकों को याने स्वपनों के फल को अच्छी तरह से कह सके ऐसे विद्वानों को बुलाओ । कौटुम्बिक पुरुषों को इस प्रकार से कहा- हे देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र जाओ और जो आठ है अंग जिसमें ऐसा जो महान् निमित्तशास्त्र याने परोक्ष पदार्थों को बताने वाला शास्त्र उस निमित्त शास्त्रों के सूत्र व अर्थ में पारंगत बने हुए एवं विविध जाति के शास्त्रों में कुशल ऐसे स्वप्न लक्षण पाठकों को याने स्वपनों के फल को अच्छी तरह से कह सके ऐसे विद्वानों को नों के कल बुलाओ।
६५) उसके बाद वे कौटुंबिक पुरुष सिद्धार्थ राजा के द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर हर्षित हुए, संतुष्ट हुए, यावत् प्रफुल्लित हृदयवाले होकर, दो हाथ जोड़कर, यावत् दश नाखून मिलाकर आवर्त करके, मस्तक पर अंजलि रचकर जो आप स्वामी आज्ञा करते है, उसके उनुसार करेंगे
।" इस प्रकार सिद्धार्थ राजा की आज्ञा के वचनों का विनय
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