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बिछाये गये है ऐसे व मंगल निमित्त श्वेत सरसों के द्वारा की गई है पूजा जिनकी ऐसे आठ सिंहासन रखवाता है।
आठ सिंहासन रखवाकर अपने से बहुत दूर नहीं व नजदीक भी नहीं इस प्रकार सभा के भीतरी भाग में एक पर्दा बंधवाता है। वह पर्दा कैसा है? विविध प्रकार के मणि और रत्नों से जड़ित होने से सुशोभित है और इसी कारण अत्यधि कि दर्शनीय है, अति मूल्यवान है, जहां उच्चकोटी के वस्त्र बुने जाते है ऐसे उत्तम शहर में बुने हुआ है, और बारीक रेशम का बनाया हुआ है व सैकडों गुंथनियों के द्वारा मन को आश्चर्य में डालने वाला ताणा है जिसमें ऐसा और वृक याने भेड़िया, वृषभ, घोडे, मनुष्य, मगरमच्छ, पक्षी, सर्प, किन्नरजाति के देव, रुरु जाती के मृग याने हिरण, अष्टापद नामक जंगली पशु, चमरी गाय (नीलगाय), हाथी, अशोकलता, आदि वन मालाएं व पद्मलताएं यानी कमलिनी इन सबके जो मनोहर-चित्ताकर्षक चित्र, उनके द्वारा मन को आश्चर्य करानेवाला, इस प्रकार की अभ्यन्तर यवनिका अर्थात् सभा के भीतरी भाग में अन्तःपुर-रानीवास को बैठने हेतु पर्दा बंधवाता है। पर्दा बंधवाकर उसमें विविध मणि-रत्न जड़ित आश्चर्यकारी, अतिकोमल ओसिका व गद्दीवाला, श्वेत कपडे से ढंका हुआ, अति मुलायम, शरीर को सुखकारी स्पर्शवाला उत्तम प्रकार का एक सिंहासन त्रिशला क्षत्रियाणी को बैठने के लिए रखवाया।
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